Writer- रमणी मोटाना
आननफानन उन्होंने चलने की तैयारी कर ली. नन्हा निखिल ‘पापापापा’ चिल्लाता रहा पर वे दोनों उसे जबरदस्ती गोद में उठा कर ले गईं.
रंजीत फटी आंखों से देखता रह गया. उस का संसार सूना हो गया. शीघ्र ही उस के पास तलाकनामे के कागजात आ पहुंचे थे. अमरचंद ने अपनी बेटी को पति से मुक्ति दिलवाने में जरा भी देरी न की थी.
कई दिनों तक मेनका मर्माहत सी पड़ी रही. चाह कर भी वह रंजीत को भुला नहीं पा रही थी. अकेले में वह पिछली बातों को याद कर रोती रहती.
उस के मांबाप उसे सम?ाने की कोशिश करते.
‘‘उस रंजीत के लिए आंसू बहाना बेकार है बेटी, वह तुम्हारे लायक नहीं था. हम तुम्हें दोबारा ब्याहेंगे. इस बार तुम्हारे लिए ऐसा लड़का ढूंढें़गे जो तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखे.’’
मातापिता की बातें सुन कर मेनका के मन में सवाल उठता, ‘‘क्या वह आदमी निखिल को पिता का प्यार देगा? क्या वह उसे जीजान से अपनाएगा?’’
रंजीत पुणे पहुंचा था. आज उस का निखिल से मिलने का दिन था. तलाक की शर्तों के मुताबिक सप्ताह में एक दिन
2 घंटे के लिए उसे अपने बेटे से मिलने की इजाजत थी.
समय से थोड़ा पहले ही वह अमरचंद की कोठी के बाहर जा पहुंचा. फाटक पर खड़े संतरी ने उसे सलाम ठोंका.
‘‘जरा अंदर खबर कर दो कि मैं निखिल से मिलने आया हूं.’’
‘‘जी साहब,’’ संतरी बोला.
मोटरसाइकिल खड़ी कर के रंजीत सड़क पर टहलने लगा. उस ने सहसा गौर किया कि एक संदिग्ध व्यक्ति फाटक के आसपास मंडरा रहा है. रंजीत ने उस पर सरसरी नजर डाली. शक्ल से वह आदमी मवाली लगता था. फिर सोचा, होगा कोई और रंजीत का ध्यान उस की ओर से हट गया.
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