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“अखिल... अखिल, सुनो मेरी बात, अगर तुम ही इस तरह से हिम्मत हार जाओगे, तो उन्हें कौन संभालेगा?” हर्षदा उसे समझाते हुए बोली, “मैं आ जाती वहां, पर तुम्हें तो पता है कि काम पूरा करे बगैर नहीं आ सकती. इसलिए कह रही हूं कि अपने मन को कड़ा करो, क्योंकि अब तुम्हें ही सबकुछ संभालना है.

“समझ रहे हो न मेरी बात...? तो प्लीज, रोओ मत... क्योंकि तुम्हें रोते देख वे लोग भी टूट जाएंगे.“

“हां, ठीक है. तुम अपना ध्यान रखना,” कह कर अखिल ने फोन रख दिया.

बेटे निखिल के गम में अखिल के मम्मीपापा बेसुध पड़े थे. न वे ठीक से खापी रहे थे और न सो पा रहे थे, और जिस का असर सीधे उन की सेहत पर पड़ रहा था. इधर निकिता को भी अपने पति के जाने का ऐसा सदमा लगा था कि वह न तो रो रही थी और न कुछ बोल रही थी. डाक्टर का कहना था कि निकिता को कैसे भी कर के रुलाना ही पड़ेगा, वरना इस का असर उस के होने वाले बच्चे पर पड़ सकता है.

हां, निकिता 2 महीने की प्रेगनेंट थी. यह बात जब निखिल को मालूम पड़ी, तो वह खुशी से बौखला गया था. मगर उसे क्या पता था कि अपने बच्चे का मुंह देखे बगैर ही वह इस दुनिया को छोड़ कर चला जाएगा.

एक रोज अखिल के बहुत कोशिश करने पर अपने पति को याद कर निकिता खूब रोई और रोतेरोते बेहोश हो गई. अब जो हो चुका था उसे बदला तो नहीं जा सकता था. लेकिन अब निकिता के सासससुर को उस के और उस के होने वाले बच्चे के भविष्य की चिंता सताने लगी कि उन के बाद इन दोनों का क्या होगा क्योंकि पूरी जिंदगी वे उन के साथ तो नहीं रह सकते न. एक उम्र के बाद सब को यह दुनिया छोड़ कर जाना ही पड़ता है. इसलिए उन्होंने विचार किया कि निकिता की दूसरी शादी करा दी जाए. लेकिन क्या पता कि सामने वाला निकिता के बच्चे को न अपनाए तो...?

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