आज संडे की छुट्टी में पार्क में अखिल और हर्षदा सुकून के पल बिता रहे थे. अखिल की गोद में लेटी हर्षदा उस के शर्ट के बटन से खेल रही थी, तो अखिल प्यार से हौलेहौले उस के बालों में उंगलियां फिरा रहा था. जब भी ये दोनों एकसाथ होते, तब सारी दुनिया भुला कर एकदूसरे में इस कदर खो जाते कि इन्हें यह भी याद नहीं होता था कि ये कहां हैं और इन के आसपास कौन लोग हैं.
“अखिल, बताओ तो…” हर्षदा बोली, “इन कपड़ों में मैं कैसी लग रही हूं? और ये कलर मुझ पर सूट कर रहा है न?”
“बहुत खूब…” अखिल ने आंखें बड़ी करते हुए कहा, “तुम तो हर कपड़ों में अच्छी लगती हो, क्योंकि तुम इतनी खूबसूरत जो हो. वैसे, तुम कुछ नहीं भी पहनोगी तो भी अच्छी ही लगोगी,” बोल कर अखिल खिलखिला कर हंस पड़ा.
“पागल…” हर्षदा एक प्यार की चपत अखिल के गाल पर लगाते हुए बोली, “कुछ भी बोलते हो न… अच्छा, ये सब छोड़ो, यह बताओ कि हम अपने बच्चे का नाम क्या रखेंगे?”
“बच्चे का नाम…?” अखिल सोचने लगा, फिर बोला, “बेटी हुई, तो टुकटुक और बेटा हुआ जिआन. है न कितना प्यारा नाम?”
“एकदम बकवास…’’ हर्षदा उठ बैठी और मुंह बना कर बोली, “टूकटूक और जिआन. ये भी कोई नाम हुए? हम अपने बच्चे का नाम एकदम स्टाइलिश रखेंगे. जैसे, अगर बेटी हुई तो अरिका, जीविका या महिका रखेंगे. और अगर बेटा हुआ तो हम उस का नाम अहान, युग या रेयान रखेंगे. बोलो, है न कितने प्यारेप्यारे नाम.“
“अरे, बाप रे बाप, इतने नाम कहां से सीखे तुम ने? लगता है, काफी सर्च किया है,” कहते हुए अखिल हंस पड़ा.
“सर्च नहीं किए, बल्कि ये सब नाम मेरी सहेलियों के बच्चों के और सोसाइटी के बच्चों के हैं, जो मुझे बहुत अच्छे लगे और तभी मैं ने सोच लिया कि जब हमारा बच्चा होगा न…
“बस… बस,” हर्षदा को बीच में ही टोकते हुए अखिल बोला, “बच्चे आने से पहले हमारी शादी तो हो जाने दो. वैसे, तुम कहो तो मैं अभी इसी वक्त यहीं पर तुम्हारे साथ सात फेरे लेने को तैयार हूं. और… और फिर हनीमून भी यहीं मना लेते हैं, क्यों?” शरारती अंदाज में मुसकराते हुए अखिल ने हर्षदा को चूम लिया, तो वह शरमा गई.
“धत… तुम भी न, बहुत बेशर्म हो,” हर्षदा ने उसे हौले से धक्का देते हुए कहा, “न जगह देखते हो और न कुछ, बस शुरू हो जाते हो.“
“अब इस में बेशर्म वाली क्या बात हो गई? तुम मेरी होने वाली बीवी हो,” बोल कर वह फिर हर्षदा को चूमने लगा, तभी वह उस की पकड़ से छूट कर दूर हट गई और अंगूठा दिखाते हुए बोली कि अब पकड ़कर दिखाओ तो जाने.
“अच्छाजी, तो मुझे चैलेंज किया जा रहा है… तो अब देखो,” बोल कर वह हर्षदा के पीछे भागा, तो वह उस से बचने के लिए और तेज भागी और एकदम से लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ी.
“अरे,” बोल कर अखिल उसे उठाने को दौड़ा.
“बहुत चोट आई क्या…?” उस ने पूछा, तो हर्षदा ‘नहीं’ में सिर हिला कर उठने लगी कि फिर गिर पड़ी. अखिल को लगा कि कहीं उस का पैर फ्रेक्चर तो नहीं हो गया. इसलिए उसे गोद में उठा कर बेंच पर बैठा दिया और उस का पैर रगड़ने लगा.
“कैसा लग रहा है अब? चल पाओगी न अब?’’ उसे सहारा दे कर खड़ा करते हुए अखिल बोला. लेकिन शुक्र था कि उसे कुछ नहीं हुआ. पैर एकदम सहीसलामत थे, बस जरा सी खंरोच लग गई थी.“ओह, मैं तो डर ही गया था,” अखिल ने अपने दोनों कान पकड़ते हुए सौरी कहा, तो हर्षदा खिलखिला कर हंस पड़ी. वह बोली, “अरे, इतनी छोटी सी बात पर सौरी क्यों? वैसे, मैं तो तुम्हें शेर समझती थी, लेकिन तुम तो चूहा निकले. डरपोक कहीं के,” हर्षदा की बात पर अखिल की हंसी छूट गई.
“मेरे जरा सा गिरने पर तुम इतना घबरा गए, तो मैं जब तुम से एक साल के लिए दूर हो जाऊंगी, फिर क्या करोगे तुम? कैसे रहोगे मेरे बगैर?”
“पता नहीं यार, सोचता भी नहीं हूं इस बारे में, क्योंकि सोच कर ही दिल कांप उठता है कि एक साल तुम्हारे बिना मैं कैसे रहूंगा?ं” बोलते हुए अखिल भावुक हो उठा, तो हर्षदा की भी आंखें गीली हो गईं. वह कहने लगी कि उसे भी कहां उस से दूर जाने का मन हो रहा है. लेकिन मजबूरी है, इसलिए जाना पड़ रहा है.