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उस की यह बात सुन निखिल बिफर गया. गुस्से में बोला, ‘‘तो क्या घर बैठ कर तुम्हारे पल्लू से बंधा रहूं? मैं मर्द हूं. अपनेआप को काम में व्यस्त रखना चाहता हूं, तो तुम्हें तकलीफ क्यों होती है?’’

मीता निखिल की यह बात सुन अंदर तक हिल गई. मन ही मन सोचने लगी कि इस में मर्द और औरत वाली बात कहां से आ गई.

हां, जब कभी निखिल को कारोबार संबंधी कागजों पर मीता के दस्तखत चाहिए होते तो वह बड़ी मुसकराहट बिखेर कर उस के सामने कागज फैला देता और कहता, ‘‘मालकिन, अपनी कलम चला दीजिए जरा.’’

कभी वह रसोई में आटा गूंधती बाहर आती तो कभी अपनी पसंदीदा किताब पढ़ती बीच में छोड़ती और मुसकरा कर दस्तखत कर देती.

मीता का निखिल के प्रति खिंचाव अभी भी बरकरार था. सो आज अकेले में मुसकुराने लगी और सोचा कि ठीक ही तो कहा निखिल ने. घर के लिए ही तो काम करता है सारा दिन वह, मैं ही फालतू उलझ बैठी उस से.

शाम को जब वह आया तो वह पूरी मुसकराहट के साथ उस के स्वागत में खड़ी थी, लेकिन निखिल का रुख कुछ बदला हुआ था. मीता उस के चेहरे के भाव पढ़ कर समझ गई कि निखिल उस से सुबह की बात को ले कर अभी तक नाराज है. सो उस ने उसे खूब मनाया. कहा, ‘‘निखिल, क्या बच्चों की तरह नाराज हो गए? हम दोनों जीवनपथ के हमराही हैं, मिल कर साथसाथ चलना है.’’

लेकिन निखिल के चेहरे पर से गुस्से की रेखाएं हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं. क्या करती बेचारी मीता. आंखें भर आईं तो चादर ओढ़ कर सो गई.

निखिल अगली सुबह भी उसे से नहीं बोला. घर से बिना कुछ खाए निकल गया.

आज पहली बार मीता का दिल बहुत दुखी हुआ. वह सोचने लगी कि आखिर ऐसा भी क्या कह दिया था उस ने कि निखिल 3 दिन तक उस बात को खींच रहा है.

अब वह घर में निखिल से जब भी कुछ कहना चाहती उस का पौरुषत्व जाग उठता. एक दिन तो गुस्से में उस के मुंह से निकल ही गया, ‘‘क्यों टोकाटाकी करती रहती हो दिनरात?

तुम्हारे पास तो कुछ काम है नहीं…ये जो रुपए मैं कमा कर लाता हूं, जिन के बलबूते पर तुम नौकरों से काम करवाती हो, वो ऐसे ही नहीं आ जाते. दिमाग खपाना पड़ता है उन के लिए.’’

आज तो निखिल ने सीधे मीता के अहम पर चोट की थी. वह अपने आंसुओं को पोंछते हुए बिस्तर पर धम्म से जा पड़ी. सारी रात उसे नींद नहीं आई. करवटें बदलती रही. उसे लगा शायद निखिल ने गुस्से में आ कर कटु शब्द बोल दिए होंगे और शायद रात को उसे मना लेगा. लेकिन इस रात की तो जैसे सुबह ही नहीं हुई. जहां वह करवटें बदलती रही वहीं निखिल खर्राटे भर कर सोता रहा.

अब तो यह खिटपिट उन के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन गई थी. इसलिए उस ने निखिल से कई बातों पर बहस करना ही बंद कर दिया था. कई बार तो वह उस के सामने मौन व्रत ही धारण कर लेती.

सिनेमाहाल में नई फिल्म लगी थी. मीता बोली, ‘‘निखिल, मैं टिकट बुक करा देती हूं. चलो न फिल्म देख कर आते हैं.’’

‘‘तुम किसी और के साथ देख आओ मीता, मेरे पास बहुत काम है,’’ कह निखिल करवट बदल कर सो गया.

मीता ने उसे झंझोड़ कर बोला, ‘‘किस के साथ देख आऊं मैं फिल्म? कौन है मेरा तुम्हारे सिवा?’’

निखिल चिढ़ कर बोला, ‘‘जाओ न क्यों मेरे पीछे पड़ गई. बिल्डिंग में बहुत औरतें हैं. किसी के भी साथ चली जाओ वरना कोई किट्टी जौइन कर लो… मैं ने तुम्हें कितनी बार बताया कि मुझे हिंदी फिल्में पसंद नहीं.’’

मीता उस की बात सुन एक शब्द न बोली और अपनी पनीली आंखों को पोंछ मुंह ढक कर सो गई.

आज मीता को अपने विवाह के शुरुआती महीनों की रातें याद हो आईं. कितनी असहज सी होती थी वह जब नया विवाह होते ही निखिल रात को उसे पोर्न फिल्में दिखाता था. वह निखिल का मन रखने को फिल्म तो देख लेती थी पर उसे उन फिल्मों से बहुत घिन आती थी.

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