जैसे ही मीता के विवाह की बात निखिल से चली वह लजाई सी मुसकरा उठी. निखिल उस के पिताजी के दोस्त का इकलौता बेटा था. दोनों ही बचपन से एकदूसरे को जानते थे. घरपरिवार सब तो देखाभाला था, सो जैसे ही निखिल ने इस रिश्ते के लिए रजामंदी दी, दोनों को सगाई की रस्म के साथ एक रिश्ते में बांध दिया गया.
मीता एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती थी और निखिल अपने पिताजी के व्यापार को आगे बढ़ा रहा था.
2 महीने बाद दोनों परिणयसूत्र में बंध कर पतिपत्नी बन गए. निखिल के घर में खुशियों का सावन बरस रहा था और मीता उस की फुहारों में भीग रही थी.
वैसे तो वे भलीभांति एकदूसरे के व्यवहार से परिचित थे, कोई मुश्किल नहीं थी, फिर भी विवाह सिर्फ 2 जिस्मों का ही नहीं 2 मनों का मिलन भी तो होता है.
विवाह को 1 महीना पूरा हुआ. उन का हनीमून भी पूरा हुआ. अब निखिल ने फिर काम पर जाना शुरू कर दिया. मीता की भी छुट्टियां समाप्त हो गईं.
‘‘निखिल पूरा 1 महीना हो गया दफ्तर से छुट्टी किए. आज जाना है पर तुम्हें छोड़ कर जाने को मन नहीं कर रहा,’’ मीता ने बिस्तर पर लेटे अंगड़ाई लेते हुए कहा.
‘‘हां, दिल तो मेरा भी नहीं, पर मजबूरी है. काम तो करना है न,’’ निखिल ने जवाब दिया. तो मीता मुसकरा दी.
अब रोज यही रूटीन रहता. दोनों सुबह उठते, नहाधो कर साथ नाश्ता कर अपनेअपने दफ्तर रवाना हो जाते. शाम को मीता थकीमांदी लौट कर निखिल का इंतजार करती रहती कि कब निखिल दफ्तर से आए और कब दो मीठे बोल उस के मुंह से सुनने को मिलें.
एक दिन वह निखिल से पूछ ही बैठी, ‘‘निखिल, मैं देख रही हूं जब से हमारी शादी हुई है तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त ही नहीं.’’
‘‘मीता शादी करनी थी हो गई… अब काम भी तो करना है.’’
निखिल का जवाब सुन मीता मुसकरा दी और फिर मन ही मन सोचने लगी कि निखिल कितना जिम्मेदार है. वह अपने वैवाहिक जीवन से बहुत खुश थी. वही करती जो निखिल कहता, वैसे ही रहती जैसे निखिल चाहता. और तो और खाना भी निखिल की पसंदनापसंद पूछ कर ही बनाती. उस का स्वयं का तो कोई रूटीन, कोई इच्छा रही ही नहीं. लेकिन वह खुद को निखिल को समर्पित कर खुश थी. इसलिए उस ने निखिल से कभी इन बातों की शिकायत नहीं की. वह तो उस के प्यार में एक अनजानी डोर से बंध कर उस की तरफ खिंची जा रही थी. सो उसे भलाबुरा कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था.
वह कहते हैं न कि सावन के अंधे को सब हरा ही हरा दिखाई देता है. बस वैसा ही हाल था निखिल के प्रेम में डूबी मीता का. निखिल रात को देर से आता. तब तक वह आधी नींद पूरी भी कर चुकी होती.
एक बार मीता को जम्हाइयां लेते देख निखिल बोला, ‘‘क्यों जागती हो मेरे लिए रात को? मैं बाहर ही खा लिया करूंगा.’’
‘‘कैसी बात करते हो निखिल… तुम मेरे पति हो, तुम्हारे लिए न जागूं तो फिर कैसा जीवन? वैसे भी हमें कहां एकदूसरे के साथ बैठने के लिए वक्त मिलता है.’’ मीता ने कहा.
विवाह को 2 वर्ष बीत गए, किंतु इन 2 वर्षों में दोनों रात और दिन की तरह हो गए. एक आता तो दूसरा जाता.
एक दिन निखिल ने कहा, ‘‘मीता तुम नौकरी क्यों नहीं छोड़ देतीं… हमें कोई पैसों की कमी तो नहीं. यदि तुम घर पर रहो तो शायद हम एकदूसरे के साथ कुछ वक्त बिता सकें.’’
जैसे ही मीता ने अपनी दफ्तर की कुलीग नेहा को इस बारे में बताया, वह कहने लगी, ‘‘मीता, नौकरी मत छोड़ो. सारा दिन घर बैठ कर क्या करोगी?’’
मगर मीता कहां किसी की सुनने वाली थी, उसे तो जो निखिल बोले बस वही ठीक लगता था. सो आव देखा न ताव इस्तीफा लिख कर अपनी बौस के पास ले गई. वे भी एक महिला थीं, सो पूछने लगीं, ‘‘मीता, नौकरी क्यों छोड़ रही हो?’’
‘‘मैम, वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी को मिल कर चलना होता है, निखिल तो अपना कारोबार दिन दूना रात चौगुना बढ़ा रहा है, यदि पतिपत्नी के पास एकदूसरे के लिए समय ही नहीं तो फिर कैसी गृहस्थी? फिर निखिल तो अपना कारोबार बंद करने से रहा. सो मैं ही नौकरी छोड़ दूं तो शायद हमें एकदूसरे के लिए कुछ समय मिले.’’
बौस को लगा जैसे मीता नौकरी छोड़ कर गलती कर रही है, किंतु वे दोनों के प्यार में दीवार नहीं बनाना चाहती थीं, सो उस ने मीता का इस्तीफा स्वीकार कर लिया.
अब मीता घर में रहने लगी. जैसे आसपास की अन्य महिलाएं घर की साफसफाई, साजसज्जा, खाना बनाना आदि में वक्त व्यतीत करतीं वैसे ही वह भी अपना सारा दिन घर के कामों में बिताने लगी. कभी निखिल अपने बाहर के कामों की जिम्मेदारी उसे सौंप देता तो वह कर आती, सोचती उस का थोड़ा काम हलका होगा तो दोनों को आपस में बतियाने के लिए वक्त मिलेगा.
उस की दफ्तर की सहेलियां कभीकभी फोन पर पूछतीं, ‘‘मीता, घर पर रह कर कैसा लग रहा है?’’
‘‘बहुत अच्छा, सब से अलग,’’ वह जवाब में कहती.
दीवानी जो ठहरी अपने निखिल की. दिन बीते, महीने बीते और पूरा साल बीत गया. मीता तो अपने निखिल की मीरा बन गई समझो. निखिल के इंतजार में खाने की मेज पर ही बैठ कर ऊंघना, आधी रात जाग कर खाना परोसना तो समझो उस के जीवन का हिस्सा हो गया था.
अब वह चाहती थी कि परिवार में 2 से बढ़ कर 3 सदस्य हो जाएं, एक बच्चा हो जाए तो वह मातृत्व का सुख ले सके. वैसे तो वह संयुक्त परिवार में थी, निखिल के मातापिता भी साथ में ही रहते थे, किंतु निखिल के पिता को तो स्वयं कारोबार से फुरसत नहीं मिलती और उस की मां अलगअलग गु्रप में अपने घूमनेफिरने में व्यस्त रहतीं.
‘‘निखिल कितना अच्छा हो हमारा भी एक बच्चा हो. आप सब तो पूरा दिन मुझे अकेले छोड़ कर बाहर चले जाते हो… मुझे भी तो मन लगाने के लिए कोई चाहिए न,’’ एक दिन मीता ने निखिल के करीब आते हुए कहा.
जैसे ही निखिल ने यह सुना वह उस के छिटकते हुए कहने लगा, ‘‘मीता, अभी मुझे अपने कारोबार को और बढ़ाना है. बच्चा हो गया तो जिम्मेदारियां बढ़ जाएंगी और फिर अभी हमारी उम्र ही क्या है.’’
मीता ने उसे बहुत समझाया कि वह बच्चे के लिए हां कह दे, किंतु निखिल बड़ी सफाई से टाल गया, बोला, ‘‘क्यों मेरा हनीमून पीरियड खत्म कर देना चाहती हो?’’
उस की बात सुन मीता एक बार फिर मुसकरा दी. बोली, ‘‘निखिल तुम बहुत चालाक हो.’’
मगर मीता अकेले घर में कैसे वक्त बिताए हर इंसान की अपनी दुनिया होती है. वह भी अपनी दुनिया बसाना चाहती थी, किंतु निखिल की न सुन कर चुप हो गई और निखिल अपनी दुनिया में मस्त.
एक दिन मीता बोली, ‘‘निखिल, मैं सोचती थी कि मैं नौकरी छोड़ दूंगी तो हमें एकसाथ समय बिताने को मिलेगा, किंतु तुम तो हर समय घर पर भी अपना लैपटौप ले कर बैठे रहते हो या फिर फोन पर बातों में लगे रहते हो.’’