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काव्या मौका तलाशने लगी. समय शायद इस बार काव्या के पक्ष में ही चल रहा था. अगले ही महीने काव्या ने खुशखबरी दी कि घर में तीसरी पीढ़ी का आगमन होने वाला है. सास ने बलाएं लीं... भारी काम करने से मना किया... ससुर हर समय चहकने लगे... और अभय के तो मिजाज ही निराले लग रहे थे... पत्नी पर बादलों सा उमड़घुमड़ कर प्यार आने लगा... दोस्तों में उठनाबैठना कम हो गया... खिलौने से कमरे में जगह कम पड़ने लगी. मनुहार करकर के खिलानेपिलाने लगा... काव्या के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे... इस हंसीखुशी के बीच कहीं न कहीं साजिशों के बीज भी अंकुरण की जगह तलाश रहे थे.

8 महीने पूरे हुए. काव्या की गोद भराई की रस्म के बाद अब कल उसे अपने मायके जाना है. पूरी रात अभय की हिदायतों का लैक्चर जारी था- यह करना, यह मत करना... ऐसे बैठना... ऐसे सोना... अभय बोले जा रहा था. काव्या सुनने का दिखावा करती लेटी थी. दिमाग में तो अलग ही खिचड़ी पक रही थी.

गर्भ का समय पूरा हुआ और काव्या ने एक नन्हे फरिश्ते को जन्म दिया. दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई. टोकरे भरभर कर मिठाई और बधाइयों का आदानप्रदान हो रहा था. पोते को देखने के लिए दादादादी सिर के बल चले आए. अभय के पांव भी कहां रुकने वाले थे. बिना किसी की परवाह किए सीधे काव्या के पास पहुंचा.

‘‘बेसब्रा कहीं का,’’ कह कर मां मुसकराईं, लेकिन देखा जाए तो खुद उन्हें भी कहां सब्र था. खैर, अभय ने जैसे ही अपने अंश को अंक में भरने की चेष्टा की, काव्या ने उसे अपने कलेजे से लगा लिया. अभय ने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर गड़ा दी. ‘‘इतनी आसानी से नहीं सैयांजी... पहले एक वादा करना होगा...’’  काव्या इठलाई.

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