‘‘मम्मी का चमचा,’’ काव्या ने मुंह सिकोड़ा.
‘‘सुनो, आज खाना बनाने की हिम्मत नहीं है. चलो न कहीं बाहर चलते हैं... वैसे भी पिज्जा खाए बहुत दिन हो गए.’’ काव्या ने चिरोरी की तो अभय चलने के लिए तैयार हो गया.
‘हवा के साथसाथ... घटा के संगसंग... ओ साथी चल... तू मुझे ले कर साथ चल तू... यूं ही दिनरात चल तू...’ काव्या एक हाथ से अभय की कमर पकड़े और दूसरे हाथ से विभू को संभाले बाइक पर उड़ी जा रही थी... अभय के शरीर से उठती परफ्यूम और पसीने की मिलीजुली गंध ने उसे दीवाना बना दिया था. हालांकि अभय अभी भी चुप सा ही था. काव्या चाहती थी कि कुछ देर यों ही हवा से अठखेलियां होती रहें. लेकिन तभी अभय ने पीज्जाहट के सामने ले जा कर बाइक रोक दी.
महीनों बाद दिलबर के साथ आउटिंग थी... काव्या ने जीभर ‘ओनियन,
कैप्सिकम, टोमैटो पिज्जा विद डबल चीज’ खाए, साथ में फ्रैंचफ्राइज और गर्लिक ब्रैड भी... विभू थोड़ी देर तो खुश रहा, फिर परेशान करने लगा तो काव्या ने फीड करवा दिया. मां की छाती से लगते ही बच्चा सो गया. घर पहुंचते ही काव्या ने खुद को बिस्तर के हवाले कर दिया. दिनभर की थकीहारी तुरंत ही नींद के आगोश में चली गई. अभय इंतजार करता रह गया. अभी नींद आंखों में पूरी तरह से घुली भी नहीं थी कि विभू बाबू ने रंग बदलने शुरू कर दिए. आधेआधे घंटे के अंतराल पर 4 बार कपड़े गंदे कर दिए. पोतड़े बदलतेबदलते काव्या का रोना छूट गया. अभय ने उसे दवा दे दी, लेकिन दवा भी तो असर करतेकरते ही करती है. खैर, किसी तरह रात बीती तो विभू की आंख लगी. काव्या ने भी पलकें झपक लीं. आंख खुली तो सुबह के 8 बज रहे थे. अभय औफिस जाने के लिए लगभग तैयार था.
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