कैफेटेरिया में बैठा सत्यम अब उकताने लगा था. उस की चौथी कप कौफी चल रही थी. सुहानी का कोई अतापता नहीं था. सुहानी की याद आते ही उस के अधरों पर फिर से मुसकान तैरने लगी. उस के स्मरण मात्र से ही दिलदिमाग में शहनाइयां बजने लगती थीं. बमुश्किल 4 बार उस से अकेले में व एक बार घरवालों के साथ मिला है. पर यह पहली नजर का प्यार था. उस ने सुहानी को जब पहली दफा देखा था तभी उस के दिल से आवाज आने लगी थी, ‘हां, यही है, यही है, यही तो है…’
कोई 16 वर्ष की उम्र में वह पहली बार घर से बाहर होस्टल में रहने गया था, प्लस टु इंजीनियरिंग फिर एमबीए और अब नौकरी. मजाल है जो उस ने किसी भी सहपाठी या महिला सहकर्मी की तरफ आंख भी उठा कर देखा हो. बचपन से ही घर में मम्मीपापा ने कुछ ऐसी घुट्टी पिलाई थी कि वह ऐसा सोच भी नहीं सकता था कि वे घरवालों की पसंद की लड़की के सिवा किसी से शादी या दोस्ती भी कर ले.
वर्षों उस ने उम्र के नाजुक दौर से गुजरने के वक्त भी. अपने दिल की लगाम को कसे रखा. अपनी पसंद की पढ़ाई, कालेज और नौकरी करने के अधिकार को ही सहर्ष उस ने अपनी स्वतंत्रता का अधिकारक्षेत्र माना. अपने प्यार और शादी के अधिकार की लगाम सदा अपनी मां और परिवार वालों के ही अधिकार क्षेत्र का मामला सोच उन के ही हाथ में रहने दिया.
सत्यम की मां काफी पूजापाठ और धर्मकर्म करने वाली महिला थीं. बहुत जल्दी ही उन्हें पारिवारिक दायित्वों के भार से राहत मिल गईर् थी. सो, वे अपना अधिकांश वक्त साधुमहात्माओं की संगत और सत्संग में बिताती थीं. सत्यम के पिता एक बड़े व्यापारी थे. उन्हें अपने व्यापार से वक्त नहीं मिलता था. सो, उन्हें अपनी पत्नी का दिनरात साधुपंडितों और मंदिरों का चक्कर लगाना राहत ही देता. कम से कम उन से उन के वक्त के लिए गृहकलह तो नहीं करती थी. सो, सत्यम के पिता एक तरह से पत्नी की अंतरलिप्तता को प्रोत्साहन ही देते कि कहीं व्यस्त तो है.
सत्यम की मां धीरेधीरे पंडोंपुजारियों पर अपने घरवालों से अधिक विश्वास करने लगी थीं. वे लोग भी एक अच्छा आसामी समझ बरगलाए रखते थे. कभी शनि के वक्री होने पर दानपुण्य, तो कभी गुरु के किसी गलत घर में बैठ जाने पर महापाठ.
जाने क्यों सत्यम की मां को यह समझ ही नहीं आता कि जब वे हमेशा उन के ही कहे अनुसार चल रही हैं तो फिर ये गृहनक्षत्र उस से रूठते क्यों रहते हैं. उन्हें तो यह सोचना चाहिए कि जब वे इतना दान और चढ़ावा दे रही हैं तो फिर उन का अनिष्ट कैसे हो सकता है. परंतु वे ठीक इस के विपरीत समझ रखती थीं. उन्हें हमेशा यही लगता कि यदि वे ऐसे कर्मकांड नहीं करतीं तो कुछ और अवश्य बुरा घटित हो जाता. एक तरह से वे हमेशा सशंकित और डरीसहमी रहतीं कि कुछ अनहोनी न हो जाए. भक्ति से शक्ति के स्थान पर सत्यम की मां और असहाय, और शक्तिहीन होती जा रही थीं. अब वे पंडित और पुरोहित की सलाह के बिना एक कदम न उठाती थीं.
सत्यम को नौकरी करते लगभग 2 साल होने को आए थे. उस की मां और अन्य रिश्तेदार उस के लिए उपयुक्त वधू खोजने में लगे हुए थे. लड़कियां तो थीं पर कभी उस की मां को पसंद आती तो उस के पिता को उस लड़की के पिता का व्यवसाय पसंद नहीं आता. कभी दादी को लड़की की रंगत नहीं पसंद आती तो कभी सत्यम की बूआ लड़की के परिवार की कोई बुराई ऐसी खोज निकाल लातीं कि वहां रिश्ता करना मुश्किल लगता. यानी पूरा परिवार लगा हुआ था सत्यम के लिए दुलहन खोजने में.
दरअसल, सत्यम को कैसी बीवी चाहिए, यह कोई पूछना भी नहीं चाहता था. एकमत होने में उन्हें 2 वर्ष लग ही गए. तब उन्हें सुहानी पसंद आई. सुहानी, उस के मातापिता, घरपरिवार, पढ़ाई, औकात इत्यादि से संतुष्ट हो कर उन्होंने सत्यम को बताया.
सत्यम, जिस ने जीवन में पहली बार किसी लड़की को ऐसी नजर से देखा हो उसे तो पसंद आनी ही थी. कहना न होगा कि पहली ही नजर में वह दिल हार गया सुहानी के हाथों. अलबत्ता, सत्यम की मां ने अवश्य कहा, ‘कृपया सुहानी की कुंडली हमें दे दें ताकि हम अपने पुरोहित से सलाह कर शादी का दिन निकलवा सकें.’
‘परंतु हम तो जन्मकुंडली इत्यादि में विश्वास ही नहीं करते. सो, हमारे पास सुहानी की कोई कुंडली नहीं है,’ सुहानी के पापा ने कहा.
सत्यम की मम्मी कुछ परेशान सी होने लगीं. फिर वहीं से उन्होंने अपने पुरोहित को फोन लगाया. उन से बात की और फिर, ‘देखिए, ऐसा है यदि आप के पास कुंडली नहीं है तो कोई बात नहीं. आप मेरे पुरोहितजी से मिल लें. वे जन्मदिन और वक्त के हिसाब से सुहानी बिटिया की कुंडली बना देंगे,’ कह कर सत्यम की मां ने हल निकाला.
उस दिन के बाद से घरवालों की रजामंदी से सत्यम और सुहान मिलने लगे. सत्यम को सुहानी का सुहाना सा व्यक्तित्व, सोच और जीवन के प्रति सकारात्मक विचार काफी आकर्षक लगे. सुहानी को भी सत्यम की पढ़ाई, नौकरी और सीधापन भा गया. कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए और इंतजार करने लगे कि कब शादी होगी.
सुहानी तो कैफेटेरिया नहीं आई, पर सत्यम की मम्मी के फोन आने लगे.
‘‘बेटा, जल्दी घर आ जाओ, कुछ जरूरी बात बतानी है.’’
‘‘क्या हुआ मां, मैं ने तो बताया ही था कि मैं सुहानी से मिलने जा रहा हूं,’’ घर पहुंचते ही सत्यम ने कहा.
‘‘कोई जरूरत नहीं है अब उस लड़की से मिलने की,’’ मां ने लगभग चीखते हुए कहा.
‘‘क्यों, अब क्या हो गया? आप सब को तो वह पसंद है और अब मुझे भी,’’ सत्यम ने खीझते हुए कहा.
‘‘नहीं, पंडितजी ने बताया है कि सुहानी घोर मांगलिक है और उस से शादी करने वाले की शीघ्र मौत निश्चित है. मुझे अपने बेटे के लिए कोई अनिष्टकारी नहीं चाहिए,’’ मां ने कहा.
‘‘वैज्ञानिक मंगल की यात्रा कर चुके हैं और आप अभी तक उस से डरती ही हैं,’’ सत्यम ने मां को समझाना चाहा.
मां से बहस करना व्यर्थ लगा. सो, सत्यम अपने कमरे में चला गया. शाम तक घर के सभी सदस्य उस की मां की बातों से सहमत दिखे. सत्यम ने अपनी तरफ से सभी को समझाने की बड़ी कोशिशें कीं, परंतु उस की मृत्युकारी कन्या से विवाह के सभी विरुद्ध ही रहे. वह बारबार सुहानी को फोन करता रहा, परंतु उस ने कौल रिसीव ही नहीं की.
दूसरे दिन शाम को सुहानी ने उसे फोन किया.
‘‘क्या हुआ सत्यम, क्यों लगातार फोन कर रहे हो?’’
‘‘मैं कल कैफेटेरिया में देर तक तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा. तुम आई भी नहीं और मेरा फोन भी नहीं उठाया,’’ सत्यम ने शिकायती लहजे में कहा.
‘‘अब इतने भोले भी न बनो जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं. तुम्हारे घरवालों ने तो परसों ही सूचना दे दी थी कि मांगलिक होने की वजह से यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ सुहानी ने गुस्से से कहा.
‘‘और उस ढोंगी बाबा की भी कहानी सुनो, जिस की भक्त तुम्हारी मां हैं. जब मेरे पापा उस बाबा से मिले तो उस ने कहा कि मनलायक कुंडली बनाने हेतु उसे 50 हजार रुपए चाहिए. मेरे पिताजी इन बातों पर विश्वास तो करते नहीं हैं. सो, उन्होंने इनकार कर दिया. गुस्से में उस ढोंगी ने तभी धमकी दे दी कि तब तो आप की बेटी की शादी मैं उस परिवार में होने नहीं दूंगा. लड़के की मां उस की मुट्ठी में है, कुछ ऐसा भी उस ने कहा. तुम्हारे घरवालों ने मेरे पापा की बात से अधिक उस तथाकथित बाबा की बातों को माना,’’ हांफती हुई सुहानी गुस्से में बोल रही थी.
‘‘हां, तुम्हें एक अच्छी खबर दे दूं कि आज मेरी सगाई हो गई और अगले महीने शादी है. अब मुझे कभी फोन नहीं करना,’’ कहते हुए सुहानी ने फोन काट दिया.