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एक सुंदर सपना, आंख खुलने तक टूट चुका था. खुशी एक झलक दिखा पीठ मोड़ चुकी थी. सुहानी के सुहाने सपने दिल में लिए सत्यम अपनी नौकरी पर लौट गया. हर वक्त उमंग में रहने वाला सत्यम इस बार दुखी हृदय से लौटा. शरीर से भले वह लौट आया, परंतु बहुतकुछ इस बार घर पर ही छूट गया. सब से पहले तो उस का पहला प्यार छूटा, फिर मां और घरवालों की बेतुकी बातों से मन टूटा.

सुहानी की वह पहली झलक वहीं उस कमरे में ही रह गई थी. मांपापा पर उस के अटूट विश्वास की धज्जियां भी तो वहीं उड़ गईं. उस को अपनी मां का अंधविश्वास इस बार बहुत महंगा लगा, जिस का मोल उस की ख्वाहिशों की चिंदियों से चुकाया गया. क्षणभर में बन गए स्वप्नसलोने घरौंदे के मानो तिनकेतिनके बिखर गए थे. सब वहीं घर पर रह गया था. बस, अरमानों और ख्वाबों के भस्म लपेट लौटा था वह इस बार.

हर उम्र की एक मांग होती है. सत्यम का मन एक हमसफर के लिए अब तड़प रहा था. उस के साथ के अधिकतर लड़केलड़कियों की शादी हो चुकी थी. ज्यादातर उन्होंने अपनी पसंद के जीवनसाथी का चुनाव किया था. पहले हर रविवार जहां सब दोस्त मिलते थे, अब समाप्तप्राय ही था क्योंकि अधिकांश दोस्तों की शादी हो चुकी थी और सत्यम अब उन सब के साथ असहज महसूस करता था. अब उन की बातों का रुख घरपरिवार होता.

अकेलापन सत्यम पर हावी होने लगा था. वक्त गुजर रहा था और एकाकीपन अब उस के मानस पर चढ़ बैठा था. कोई 2 सालों से वह घर भी नहीं गया था.

उस के घरवालों द्वारा बहू की खोज जारी थी. उस खोज में अब पुरोहितजी और मां के कुछ और नए पंडे भी शामिल हो गए थे. इतने लोगों के मत के मद्देनजर न कभी एकमत होना था न हुआ.

मां परेशान हो और पूजापाठ में लगी रहतीं कि उस के बेटे की शादी हो जाए. धूर्त पंडितों के बिछाए जाल में फंस वे रूठे हुए काल्पनिक ग्रहनक्षत्रों की मनावन में लगी रहतीं. फिर एक दिन सत्यम को फोन आया कि दादी बहुत बीमार हैं, जल्दी घर आ जाओ.

सत्यम जब घर पहुंचा तो देखा कि घर में काफी बड़े पैमाने पर किसी हवन का आयोजन है. दादी हाथ जोड़े बिलकुल स्वस्थ बैठीं हवन की समिधा के कारण बहते आंसुओं को पोंछ रही हैं.

‘‘अब तुम ऐसे तो 2 साल से घर आ ही नहीं रहे थे, तो मुझे झूठ बोलना पड़ा,’’ मां सत्यम को गले लगाते हुए बोलीं.

‘‘मां, ऐसा नहीं करना चाहिए. यह सब क्या हो रहा है?’’ आयोजन की तरफ इंगित करते हुए उस ने पूछा.

‘‘बेटा, तुम्हारा बृहस्पति और दूसरे ग्रह भी कमजोर हैं, इसलिए विवाह तय होने में मुश्किलें आ रही हैं. इस विशेष पूजा के बाद सारे ग्रहों की चाल सुधर जाएगी. चलो, जल्दी से नहा कर आओ, पूजा पर तुम्हें ही तो बैठना है,’’ मां ने कहा.

सत्यम की निगाह 4 मोटे हट्टेकट्टे, गोरेचिट्टे जनेऊधारियों पर पड़ी जो सारे आयोजनों के कर्ताधर्ता बने हवनकुंड के पास बैठे हुए हैं. उन में वह धूर्त भी उसे दिख गया जिस ने सुहानी के पिता के साथ मोलभाव किया था. उस का सर्वांग सुलग उठा उसे देख, जिस ने उस के जीवन में आग लगाई थी.

‘‘मां, तुम कब बंद करोगी तमाशा करना. तुम्हें एहसास ही नहीं कि धर्म के नाम पर ये कितना पाखंड करवा रहे हैं. मां, जरा विज्ञान की किताबों को भी पढ़ा करो. इंसान ग्रहों तक पहुंच गया और तुम आज भी इन की पुरातन पोथियों को ही आधार माने जी रही हो. मां, यह इन का धंधा है. तुम जैसे अंधविश्वासी, भयभीत और अज्ञानी लोग इन के चंगुल में फंस अपना पैसा और वक्त दोनों बरबाद करते हैं,’’ सत्यम बोले जा रहा था, ‘‘मां, अगर तुम ने यह आयोजन जारी रखा तो मैं एक पल भी यहां नहीं रुकूंगा.’’ सत्यम ने मां को धमकी दी.

2 वर्षों बाद बेटे को देख रही मां कुछ ही क्षणों के बाद पंडों से माफी मांगते हुए उन्हें विदा किया. बमुश्किल उन्हें विदा कर सत्यम की मां भयभीत हिरनी सी सत्यम की बगल में कांपती हुई सी बैठ रोने लगीं. सत्यम ने उन की हिम्मत को बढ़ाते हुए सुहानी के पिता के साथ मां के पुरोहित की सारी बनियागीरी का बखान कर दिया.

‘‘जानती हो, अभी पिछले ही दिनों मैं ने सुहानी को उस के पति और बच्चे के साथ देखा. सुहानी ने मेरा परिचय भी कराया अपने पति से, ‘इन से मिलो, बहुत उच्चशिक्षित हैं पर मंगल, बृहस्पति, शनि की चाल से अपने जीवन के फैसले लेते हैं. मैं ने बताया था न इन के विषय में.’ तो उस के पति ने हंसते हुए कहा, ‘मैं आप को धन्यवाद देना चाहता हूं कि आप की इसी सोच की वजह से मुझे सलोनी जैसी लड़की मिल सकी, अन्यथा…’

‘‘मां, आज भी उन के ठहाके मेरे कानों में गूंज रहे हैं,’’ बोलता हुआ सत्यम भावुक हो गया.

मां आश्चर्य से उस का चेहरा तक रही थीं. उन्हें बेटे की चाहत का आज अनुभव हुआ. तभी सत्यम के पिता और घर के अन्य सदस्य भी आ कर बैठ गए.

सब को आया देख सत्यम ने अपने दिल की बात सामने रखी, ‘‘यह सच बात है कि मैं सलोनी को कभी नहीं भूल पाऊंगा. शायद मुझे ही हिम्मत दिखानी थी. पर आप सब को खुश करने के चक्करों में मैं अपनी खुशी से हाथ धो बैठा. अपनी उस कायरता और नासमझी का मुझे हमेशा अफसोस रहेगा.’’ सत्यम की बात सुन सब एकदूसरे को देखने लगे. उस के पिता ने कहा, ‘‘तुम्हारी मां और दादी तुम्हारे लिए लड़की देख रही हैं, तुम चिंता न करो.’’

‘‘नहीं, अब मुझे अपने जीवन के फैसले लेने की आजादी दें. मेरे साथ मेरे दफ्तर में निशा नाम की लड़की काम करती है. वह अपनी शादी के 3 महीने बाद ही विधवा हो गई थी. उस के घरवालों ने कुंडली का मिलान कर उस का विवाह किया था. निशा कुशाग्र और व्यवहारकुशल है. हम दोनों एकदूसरे को पसंद भी करते हैं. अगले महीने की 3 तारीख को हम कोर्ट मैरिज करने वाले हैं. आप लोग तो उसे स्वीकार करेंगे नहीं…’’ कहता सत्यम भावुक हो उठा और कमरे में चला गया.

उस दिन देर शाम तक किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा. एक सन्नाटा सा पसरा रहा. सब इतनी खामोशी से एकदूजे से मुंह छिपाए पड़े थे कि मानो सन्नाटा बोल पड़ेगा. सत्यम तो बोल कर जाने कब का चुप हो चुका था, पर शायद घरवाले अभी तक उसे सुन रहे थे, गुन रहे थे. सब के मन में विचारों की आंधी चल रही थी कि क्या वाकई वे गुनहगार हैं सत्यम के. मां, पापा, दादी, दादाजी, बूआ, चाचा सब यही सोच रहे थे कि अनजाने में ही भले, अपने अंधविश्वासों के चलते उन्होंने अपने आंख के तारे की हसरतों को तारतार कर दिया.

आखिर चुप्पी तोड़ी दादी ने, ‘‘बेटा सत्यम, तुम सही कह रहे हो. हम सब तुम्हारे अपराधी हैं.’’

‘‘ठीक है, हो सकता है पुरोहितजी से उस वक्त गणना करते वक्त कोई भूल हुईर् होगी. पर इस बार फिर जीतेजी मक्खी निगलना,’’ यह मां थीं जिन के मन में धर्म के नाम पर अंधविश्वासों की गहरी जड़ें फैली हुई थीं.

‘‘सत्यम की मां, वक्त के साथ अपनी सोच बदलो. इंसान जिंदगीभर सीखता रहता है. कोई जरूरी नहीं कि तुम्हारे पुरोहित ने जो कहा वह अंतिम सत्य हो जाए. विचारों की उन्नयन अतिआवश्यक है,’’ सत्यम के पापा ने अपने विचार रखे.

‘‘भाभी, जब धर्म और रीतिरिवाज व्यक्ति के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालने लगें, तो उन्हें किसी के व्यक्तिगत जीवन का अतिक्रमणकर्ता मान त्याग देना चाहिए,’’ चाचाजी ने कहा.

‘‘सत्यम दिखा तो निशा की तसवीर, जब तुम्हारे साथ ही नौकरी कर रही है तो पढ़ीलिखी तो काफी होगी,’’ कहते हुए बूआ सत्यम के पास जा बैठीं.

मां का खेमा अब खाली था, पीछे मुड़ कर देखा सुबह की पूजा व्यवस्था यों ही बिखरी पड़ी हुई थी, और आगे पूरा परिवार सत्यम को घेरे निशा कि तसवीरें लैपटौप पर देखने में मशगूल दिखा, यानी पूरा परिवार दल बदल चुका था.

मां अकेली धर्म का ताला लिए खड़ी थीं अपनी पार्टी के दरवाजे पर. कुछ देर सोचती हुई उन्होंने पूजाघर की तरफ रुख कर मन में सोचा, ‘अब तुम्हारी पूजा कल करूंगी. चलूं मैं भी अपनी होने वाली बहू की तसवीरों को देख लूं, वरना कहीं सब मुझे छोड़ बरात ले, निकल ही न जाएं.’

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