Hindi Kavita : गोलियों की रफ़्तार से भी तेज पीछे छूटती जाती है जिंदगी
पीछे छूट जाता है हमारा गांव, छूट जाता है बचपन का अल्हड़पन

यादों की फेरहिस्त में जाती धुंधलकों की मानिद लगने लगती है क्यों जिन्दगी
सुबह शाम, रात और फिर वही बात पर क्यों नयी नवेली दुल्हन की मानिद लगती है जिन्दगी

क्यों कभी–कभी सताने लगता है खालीपन, आखिर तुझ में क्या कमी है जिन्दगी
अपनों से क्यों छूट जाता है अपनों का साथ. क्यों चले जाते हैं हम दुनिया से खाली हाथ

हाय क्या सोचकर ले आई थी तू मुझे अपने साथ, जीवन रूपी मय के प्याले में डूबोती रहती है मुझे
जीवन मरण के चक्र में मुझे फंसाती रहती, अपने आप में झूठ क्यों लगती है जिन्दगी

काहे का अहं, काहे का बड़प्पन, एक दिन तो लेना है तुझे इस दुनिया से विदा
फिर ए भोले मानुस तू क्यों दिखाता है अपनी यह अदा उस दुनिया मै जो कभी तुम्हारा अपना नहीं

क्यों नहीं तू यह मानता कि यह बस तेरा सपना है जिसे तू कहता है अपनी जिन्दगी
आखिर बेवफा की तरह तू क्यों लगने लगती हो तू मुझे जिन्दगी

क्यों अपना बनाकर अपनों से ही रूठ जाती हो एक दिन जिन्दगी
क्या एक दिन हमारी ही बनकर रह सकती हो जिन्दगी

लेखक : अंजनी कुमार

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