Hindi kavita : इन दिनों नदियां थोड़ी सिमट जाती हैं
पानी थोड़ा और धरती के नीचे चला जाता!
दोपहर आलस में डूबा रहता
हमने चैत्र मास को कुछ ऐसे देखा..
ताड़/खजूर के पेड़ों पर
मिट्टी के लटकते बर्तनों में
टपकते रस को देखा,
ताड़ी पीकर जवान-बूढों को
बेसुध होते देखा,
फिर कैसे कहे,
चैत्र तुम्हारे हिस्से कुछ नहीं आया...!
महुआ के मादक गंध से सराबोर
खेत पर
महुआ चुनती स्त्रियाँ,
किसी उत्सव की तैयारी में
मगन सी दिखती...!
आंगन,छत,बरामदे में
बड़ी,पापड़,चिप्स,अचार
सूखते दिखते,,,
गृहणियां सहेज लेती है
इन दिनों मसाले व अनाज
पूरे साल भर के लिए....
फिर कैसे कह दूं
चैत्र के हिस्से कुछ नहीं आया...
अप्रैल के महीने को
छुट्टियों के महीने के नाम से जाना पर,
जब चैत्र को जाना...
तो जाना सूखती नदियों को....
ताड़ी पीकर सो रहें कुछ आबादी को....
जाना कितनी मसक्कत करनी पड़ती है
स्त्रियों को...
चैत्र के हिस्से आया है,
पूरे साल भर की रखवाली करने का,
कि यह दिन सूखने का होता है...
कि चैत्र सारी ऊष्मा को सुखाकर
उन्हें सुरक्षित कर देता....
तो सुनों चैत्र!!
तुम जैसे दिखते हो,
वैसे तो बिल्कुल नहीं हो....!!!
लेखिका : प्रतिभा
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