बंद खिड़कियों को क्यों ये गुमां है

कि उस ने रखा है चांद छिपा कर

उन से नजरें मिलीं कैसे

ये उन की, हमारी

खिड़कियों की बात है

इधर नजरें मिलीं उधर

परदे और संवरने लगे

चांद छत पे न निकलने लगा

बंद खिड़कियों में ही

घुटघुट के रहने लगा

सांस रुकने लगी,

मन तड़पने लगा

ऐ खिड़कियो, मेरी बात सुनो

चांदनी तो कुछ दिनों की बात है

इसे बिखर जाने दो

हम ने देखे यहां बहुत चांद

चांदनी आती है यहां अमावस की रात

बंद खिड़कियों को क्यों ये गुमां है

कि उस ने रखा है चांद छिपा कर.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...