चलो आज मिल कर

एक जख्म कुरेदा जाए

और यादों को

बक्से से निकाला जाए

नया कोई रंग फिर

तेरी तसवीर पर डाला जाए

और उस ख्वाब के

माने निकाले जाएं

समय नापने को

सिक्के उछाले जाएं

बहकने दो खुद को

आज न संभाला जाए

तुम्हें पा लेने की जो

हसरतें की थी हम ने

आज उन हसरतों को

प्रेमरस में डुबोया जाए

एक लमहे को फिर से

थामा जाए

एक उम्र को

फिर से बिताया जाए

सांस में सांस मिला कर

जो गीत बने

उन गीतों को मिल के

गुनगुनाया जाए

फिर से उलझाई जाए

माथे की लट तेरी

फिर उंगलियों से

बारबार सुलझाया जाए.

– अमरदीप

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