उजलीउजली आज चांदनी
धीमेधीमे ढलने दो
महकीमहकी शबनमी बूंदें
रोज न यों उजली होती हैं
साथसाथ इन शहराहों में
मुझे हौलेहौले चलने दो
पलकों पर महके ख्वाब सजते हैं
आंखों में सतरंगी सपने पलते हैं
कुछ पल को घर में रुक जाओ
तुझे दीद का सदका करने दो
रेशमी तन पर अनूठी
नमी बिखरती है
तेरे चेहरे पर चंदनिया
शर्मायी सी उतरी है
इन तारों को आज जमीं पर
मेरे साथसाथ ही चलने दो.
उर्मिला जैन ‘प्रिया’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और