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शुभ्रा नितिन के रोषपूर्ण व्यवहार और अक्खड़पन को समझ न पाती. कलह के खंजरों से वह शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से लहूलुहान हो रही थी. लेकिन नितिन का रवैया, जो उस के लिए रहस्य बना हुआ था, आज प्याज की परतों की तरह खुलने लगा था.

आज सुबह औफिस जाने से पहले फिर नितिन ने उस पर हाथ उठाया. शुभ्रा समझ ही नहीं पाई कि उस का दोष क्या है. बेबात पर नितिन का हाथ उठना उस की समझ से परे हो जाता है. अपनी तरफ से शुभ्रा भरसक यह प्रयत्न करती है कि नितिन को किसी भी तरह का कोई मौका न दे, पर नितिन तो कोई न कोई कारण ढूंढ़ ही लेता है. लगता है कि उसे किसी दोष पर नहीं, बस, मारने के लिए ही मारा जाता है.

शुभ्रा सोचती थी कि पाश्चात्य देशों में तो लोग बड़ी सभ्यता से पेश आते होंगे. यहां आने से पहले उस ने न जाने क्याक्या सपने पाले थे. हिंदुस्तान में शादी के समय के नितिन में और आज के नितिन में कितना फर्क था. उसे पा शुभ्रा फूली न समाई थी. 2 हफ्ते ही तो साथ रहे थे. फिर नितिन उसे जल्दी ही ‘स्पौंसर’ करने को कह कर विदेश चला गया था.

महीनों बीत गए थे पर नितिन ने उसे ‘स्पौंसर’ नहीं किया था. कोईर् न कोई कारण लिख भेजता था और वह उस के हर बहाने को सत्य समझ रंगीन सपनों की चिलमन से भविष्य में झांकती रही. पति को तो भारतीय आदर्शानुसार तथाकथित परमेश्वर के रूप में ही स्वीकारा था न, तो फिर अन्यथा की गुंजाइश का प्रश्न ही नहीं उठता था, और फिर 2 ही हफ्तों का तो साथ था, जो पलक झपकते ही बीत गए थे. शादी की गहमागहमी, संबंधों का नयापन व 2 हफ्तों के रोमांचकारी मिलन ने कुछ समझनेबूझने का समय ही कहां दिया था. एक सपने की तरह समय गुजर गया और बाद में वह सिर्फ उसी की खुमारी में जी रही थी.

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