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‘‘खानाबदोश सी बन गई है जिंदगी… अभी तंबू गाड़े भी नहीं थे कि उखाड़ने की तैयारी शुरू…’’ अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट कुलदीप अपना बैग पैक करतेकरते राज्य सरकार की ट्रांसफर पौलिसी को कोस रहे थे. पत्नी शशि गुमसुम सी सामान पैक करने में उन की मदद कर रही थी. उस की उदास आंखें भी सरकार की इस पौलिसी के प्रति अपनी नाराजगी की गवाही दे रही थीं.

अभी 2 साल भी पूरे नहीं हुए थे कुलदीप को अपने होम टाउन जयपुर में ट्रांसफर हुए कि फिर से ट्रांसफर और वह भी गुजरात सीमा के पास… एक आदिवासी इलाके में… सिरोही जिले में एक छोटी सी जगह पिंडवाड़ा…

हालांकि राज्य सरकार की तरफ से अपने प्रशासनिक अधिकारियों को सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, मगर परिवार की अपनी जिम्मेदारियां भी होती हैं.

पिंडवाड़ा में सभी चीजें मुहैया होने के बावजूद भी कुलदीप की मजबूरी थी कि वे शशि और बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा सकते थे.

बड़ी बेटी रिया ने अभी हाल ही में इंजीनियरिंग कालेज के फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया है और छोटा बेटा राहुल तो इस साल 10वीं जमात में बोर्ड के एग्जाम देगा. ऐसे में उन दोनों को ही बीच सैशन में डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता, इसलिए शशि को बच्चों के साथ जयपुर में ही रहना पड़ेगा.

अगर दूरियां नापी जाएं तो जयपुर और पिंडवाड़ा के बीच ज्यादा नहीं है, मगर प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारियां ही इतनी होती हैं कि हर हफ्ते इन दूरियों को तय कर पाना कुलदीप के लिए मुमकिन नहीं था. महीने में सिर्फ 1 या 2 बार ही कुलदीप का जयपुर आना मुमकिन होगा. यह बात पतिपत्नी दोनों ही बिना कहे समझ रहे थे.

कुलदीप की सब से बड़ी समस्या घर के खाने को ले कर थी. खाने के नाम पर उन्होंने कालेज में पढ़ाई के दौरान सिर्फ चावल बनाने ही सीखे थे और बाद में मैगी बनाना भी सीख लिया था. हां, शादी के बाद उन्हें चाय बनाना जरूर आ गया था.

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हमेशा तो ट्रांसफर होने पर शशि व बच्चे उन के साथ ही शिफ्ट हो जाते थे, मगर अब बच्चों की पढ़ाई उन की सुविधा से ज्यादा जरूरी हो गई है.

इधर जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी, होटलों और ढाबों के तेज मसालों वाले खाने से कुलदीप को एसिडिटी होने लगी थी. नौकरी वगैरह का तनाव होने के चलते शरीर में ब्लड शुगर का लैवल भी बढ़ने लगा था.

डाक्टरों ने कसरत करने के साथसाथ कम मसाले वाला खाना और हरी पत्तेदार सब्जियों के खाने की सख्त हिदायत दे रखी थी. पत्नी शशि परेशान थी कि उन के खाने का इंतजाम कैसे होगा.

पिंडवाड़ा पहुंचते ही जोरावर सिंह ने गरमागरम चाय के साथ कुलदीप का स्वागत किया.

जोरावर सिंह कुलदीप का सहायक होने के साथसाथ बंगले का चौकीदार और माली सबकुछ था.

जोरावर सिंह बंगले के पीछे बने सर्वेंट क्वार्टर में अपनी पत्नी राधा के साथ रहता था. चाय सचमुच बहुत अच्छी बनी थी. पीते ही कुलदीप बोले, ‘‘तुम्हें देख कर तो नहीं लगता कि यह चाय तुम ने ही बनाई है.’’

‘‘सही कहा साहब, यह चाय मैं ने नहीं, बल्कि मेरी जोरू ने बनाई है,’’ जोरावर सिंह अपने पीले दांत निकाल कर हंसा.

कुलदीप ने इस बार ध्यान से देखा उसे. बड़ीबड़ी मूंछें, कानों में सोने की मुरकी, सिर पर पगड़ी और धोतीअंगरखा पहने दुबलापतला जोरावर सिंह कुलदीप के पास जमीन पर उकड़ू बैठा हुआ उसे एकटक देख रहा था.

‘‘यहां खाने का क्या इंतजाम है?’’ कुलदीप ने पूछा.

‘‘आसपास कई गुजराती ढाबे हैं… आप को राजस्थानी खाना भी मिल जाएगा… और विदेशी खाना चाहिए तो फिर शहर में अंदर जाना पड़ेगा…’’ जोरावर सिंह ने अपनी जानकारी के हिसाब से बताया.

‘‘कोई यहां बंगले पर आ कर खाना बनाने वाला या वाली नहीं है क्या?’’ कुलदीप ने पूछा.

‘‘साहब, मैं पूछ कर बताता हूं,’’ कह कर जोरावर सिंह चाय का कप उठाने लगा.

‘कहां राजधानी जयपुर और कहां पिंडवाड़ा…’ सोच कर कुलदीप को अच्छा तो नहीं लगा, मगर उन्होंने देखा कि अरावली की पहाडि़यों की गोद में बसा पिंडवाड़ा एक खूबसूरत और शांत कसबा है.

यह एक हराभरा आदिवासी बहुल इलाका है. उन्हें यहां के लोग भी बहुत सीधेसादे और अपने काम से काम रखने वाले लगे.

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कुलदीप का सरकारी बंगला अंदर से काफी बड़ा और शानदार था. वैल फर्निश्ड घर में 2 बैडरूम अटैच बाथरूम समेत, एक ड्राइंगरूम, गैस स्टोव और चिमनी के साथ बड़ी सी किचन. एक लौबी के अलावा छोटा सा स्टोर भी था… लौबी में 4 कुरसी वाली डाइनिंग टेबल भी रखी थी.

चारों तरफ से खुलाखुला बंगला कुलदीप को बेहद पसंद आया. एक बैडरूम में एयरकंडीशनर भी लगा था. कुलदीप ने अपना सूटकेस बैडरूम में रखा और नहाने की तैयारी करने लगे.

औफिस का टाइम हो रहा था. कुलदीप नाश्ते के बारे में सोच रहे थे कि क्या किया जाए. अब तो मैगी बनाने जितना टाइम भी नहीं था. वे पहले ही दिन लेट नहीं होना चाहते थे.

‘वहीं कुछ खा लूंगा,’ सोचते हुए कुलदीप तैयार हो कर बाहर निकले तो डाइनिंग टेबल पर एक डोंगे में ढका हुआ नाश्ता रखा देखा. ढक्कन उठाया तो करीपत्ते से सजे हुए गरमागरम पोहे की खुशबू पूरे घर में फैल गई.

कुलदीप के मुंह में पानी आ गया… उन्होंने तुरंत प्लेट में डाल लिया. खाया तो स्वाद सचमुच लाजवाब था, मगर तारीफ सुनने के लिए आसपास कोई भी नहीं था. जोरावर सिंह भी नहीं…

औफिस में कुलदीप का दिन काफी थकाने वाला था. काम तो वही पुराना था, मगर नया माहौल… नए लोग… सब का परिचय लेतेलेते ही दिन बीत गया.

घर पहुंचते ही पत्नी शशि का फोन आ गया. बिजी होने के चलते दिन में बात ही नहीं कर पाए थे उस से…

यों भी शशि की बातें बहुत लंबी होती हैं, इसलिए फुरसत में ही वे उसे फोन करते हैं. अभी दोनों बातें कर ही रहे थे कि एक चीख की आवाज ने कुलदीप को चौंका दिया.

‘‘बाद में बात करता हूं,’’ कह कर उन्होंने शशि का फोन काटा और आवाज की दिशा में दौड़े.

‘आवाज तो सर्वेंट क्वार्टर में से आ रही है… तो क्या जोरावर सिंह अपनी पत्नी को पीट रहा है?’ कुलदीप कुछ देर खड़े सोचते रहे. धीमी होतीहोती सिसकियां बंद हो गईं तो वे बंगले की तरफ पलट गए.

चपरासी से कह कर रात का खाना पैक करा लिया था. सुबह नाश्ते के लिए ब्रैडजैम भी मंगवा लिया था, मगर सुबह की चाय का इंतजाम नहीं हो सका था.

सुबह उठ कर कुलदीप बंगले के गार्डन में सैर के लिहाज से चक्कर लगा रहे थे, मगर उन की आंखें सर्वेंट क्वार्टर की तरफ ही लगी थीं, तभी उन्हें जोरावर सिंह आता हुआ दिखाई दिया.

जोरावर सिंह के हाथ में चाय का कप देख कर कुलदीप को मनमांगी मुराद मिल गई.

चाय पीतेपीते उन्होंने जोरावर सिंह से फिर से खाना बनाने के इंतजाम का जिक्र किया.

‘‘साहब, कितने पैसे दोगे नाश्ता और 2 टाइम का खाना बनाने के?’’ जोरावर सिंह ने अपनी बात रखी.

‘‘तुम पैसे की चिंता मत करो, बस चायनाश्ता और खाना बिलकुल वैसा ही होना चाहिए, जैसा कल सुबह था.’’

‘‘साहब, इस का सीधा सा हिसाब है… 3 टाइम का खाना… 3,000 रुपए…’’ जोरावर सिंह ने अपने पीले दांत दिखाए.

‘‘मंजूर है, पर है कौन… कब से शुरू करेगा या करेगी?’’

‘‘अरे साहब, और कौन, राधा है न… वही बना देगी… आज और अभी से… मैं भेजता हूं उसे…’’ कह कर जोरावर सिंह ने चाय का कप उठाया और राधा को बुलाने चला गया.

राधा ने आते ही अपने सधे हुए हाथों से रसोई की कमान संभाल ली. टखनों से थोड़ा ऊंचा घाघरा और कुरती… ऊपर चटक रंग की ओढ़नी… पैरों में चांदी के मोटे कड़े और हाथों में पहना सीप का चूड़ा… कुलदीप की आंखों में ‘मारवाड़ की नार’ की छवि साकार हो उठी.

हालांकि कुलदीप ने उस का चेहरा नहीं देखा था, क्योंकि वह उन के सामने घूंघट निकालती थी, मगर कदकाठी से वह जोरावर से काफी कम उम्र की लगती थी.

सुबह की चाय जोरावर सिंह अपने घर से लाता था, उस के बाद कुलदीप का टिफिन पैक कर के राधा उन का चायनाश्ता टेबल पर लगा देती थी.

शाम का खाना कुलदीप के औफिस से लौटने से पहले ही बना कर राधा हौटकेस में रख देती थी. कुलदीप ने उसे अपने घर की एक चाबी दे रखी थी.

अभी 4-5 दिन ही बीते थे कि कुलदीप ने फिर से सर्वेंट क्वार्टर से चीखने की आवाज सुनी. उन के कदम उठे, मगर फिर ‘पतिपत्नी का आपसी मामला है’ सोच कर रुक गए.

अगले दिन उन्होंने देखा कि राधा कुछ लंगड़ा कर चल रही है. उन्होंने पूछा भी, मगर राधा ने कोई जवाब नहीं दिया.

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4 दिन बाद फिर वही किस्सा… इस बार कुलदीप ने राधा के हाथ पर चोट के निशान देखे तो उन से रहा नहीं गया.

कुलदीप ने खाना बनाती राधा का हाथ पकड़ा और उस पर एंटीसैप्टिक क्रीम लगाई. राधा दर्द से सिसक उठी.

कुलदीप ने नजर उठा कर पहली बार राधा का चेहरा देखा. कितना सुंदर… कितना मासूम… नजरें मिलते ही राधा ने अपनी आंखें झुका लीं.

अब तो यह अकसर ही होने लगा. जोरावर सिंह अपनी शराब की तलब मिटाने के लिए हर 8-10 दिन में आबू जाता था. पर्यटन स्थल होने के कारण वहां हर तरह की शराब आसानी से मिल जाती थी. वहां से लौटने पर राधा की शामत आ जाती थी.

राधा जोरावर सिंह की दूसरी पत्नी थी. वह बेतहाशा शराब पी कर राधा से संबंध बनाने की कोशिश करता और नाकाम होने पर अपना सारा गुस्सा उस पर निकालता था, मानो यह भी मर्दानगी की ही निशानी हो.

राधा के जख्म कुलदीप से देखे नहीं जाते थे, मगर मूकदर्शक बनने के अलावा उन के पास कोई चारा भी नहीं था. वह चोट खाती रही… कुलदीप उन पर मरहम लगाते रहे. एक दर्द का रिश्ता बन गया था दोनों के बीच.

धीरेधीरे राधा उन से खुलने लगी थी… अब तो खुद ही दवा लगवाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा देती थी… कभीकभी घरपरिवार की बातें भी कर लेती थी… उन की पसंदनापसंद पूछ कर खाना बनाने लगी थी. एक अनदेखी डोर से दोनों के दिल बंधने लगे थे.

2 महीने बीत गए. इस बीच कुलदीप एक बार जयपुर हो आए थे. राधा के खाना बनाने से कुलदीप को ले कर पत्नी शशि की चिंता भी दूर हो गई थी.

एक दिन सुबह राधा नाश्ता टेबल पर रखने आई तो कुलदीप टैलीविजन पर ‘ई टीवी राजस्थान’ चैनल देख रहे थे, जिस में एक मौडल लहरिया के डिजाइन दिखा रही थी.

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