कुलदीप ने नोटिस किया कि राधा ठिठक कर लहरिया की ओढ़नी देखने लगी.
इस बार जब घर आए तो न जाने क्या सोच कर शशि से छिपा कर कुलदीप ने लालहरे रंग की एक लहरिया की ओढ़नी राधा के लिए खरीद ली.
ओढ़नी पा कर राधा खिल उठी.
अगले दिन राधा वह ओढ़नी ओढ़ कर आई तो कुलदीप उसे देखते ही रह गए... झीने घूंघट से झांकता उस का चेहरा किसी चांद से कम नहीं लग रहा था. उसे यों अपलक निहारता देख राधा शरमा गई.
समय मानो रेत की तरह हाथ से फिसल रहा था. हर सुबह कुलदीप को राधा का इंतजार रहने लगा.
राधा के आने में अगर जरा भी देर हो जाती तो वे बेचैनी से घर के बाहर चक्कर लगाने लगते.
राधा भी मानो रातभर सुबह होने का इंतजार करती थी. सुबह होते ही बंगले की तरफ ऐसे भागती सी आती थी जैसे किसी कैद से आजाद हुई हो.
आज भी कुलदीप सुबहसवेरे बंगले के अंदरबाहर चक्कर लगा रहे थे. सुबह के 8 बज गए थे, मगर राधा अभी तक नहीं आई थी. जोरावर सिंह भी अब तक दिखाई नहीं दिया था.?
कुलदीप ने सुबह की चाय किसी तरह से बना कर पी, मगर उन्हें मजा नहीं आया. उन्हें तो राधा के हाथ की बनी चाय पीने की आदत पड़ गई थी.
कुलदीप को यह सोच कर हंसी आ गई कि एक बार उन्होंने शशि से भी कह दिया था कि ‘चाय बनाने में राधा का जवाब नहीं’. यह सुन कर मुंह फुला लिया था शशि ने.
चाय का कप सिंक में रख कर कुलदीप सर्वेंट क्वार्टर की तरफ बढ़े. अंदर किसी तरह की कोई हलचल न देख कर कुलदीप को किसी अनहोनी का डर हुआ.