मेरी 2 बेटियों में सिर्फ ढाई वर्ष का अंतर है. तबीयत ठीक न रहने के कारण मैं काम करने में दिक्कत महसूस करती हूं. एक दिन ऐसे ही मैं परेशान हो गई कि 2 छोटे बच्चों के साथ कैसे काम करूं. तब मेरी साढ़े 4 वर्षीय बेटी बोली, ‘‘मम्मी, आप परेशान मत हो. मैं अब बड़ी हो गई हूं. मैं आप की मदद करूंगी.’’ उस की यह बात सुन कर मैं हंस दी. तब से वह मेरी हर काम में मदद करती है. उस की इतनी सी उम्र में समझ और मदद करने के जज्बे से मुझ में काम करने की हिम्मत आ जाती है.
नेहा प्रधान, कोटा (राज.)
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बात उस समय की है जब मेरा तबादला ओडिशा के गंजाम जिले के ब्रह्मपुर कसबे में हुआ था. उस समय मेरा प्रोबेशन पीरियड चल रहा था. मेरी सहेली की बैंक शाखा, मेरी बैंक शाखा के पास ही थी. सो, हम दोनों ने किराए का मकान ले कर एकसाथ रहने का फैसला लिया. एक दिन जब दोनों की एक समय पर ही बैंक से छुट्टी हो गई तो हम दोनों ने बाहर डिनर करने की सोची. हम डिनर कर के होटल से बाहर निकले तो बिजली चली गई थी. हम अंधेरे में घर के लिए पैदल निकल पड़ीं. हमें जिस गली में जाना था, उस में न जा कर गलत रास्ते पर चल पड़े. मेरी सहेली मुझे बारबार बोल रही थी कि हम गलत रास्ते जा रहे हैं पर मैं ने उस की बात अनसुनी कर दी. मुझे पूरा यकीन था कि मैं सही थी. लेकिन जब तकरीबन एक किलोमीटर चलने के बाद बिजली आई तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ. तब हम अपने किराए के मकान के बिलकुल विपरीत दिशा में करीब 5 किलोमीटर दूर थे. रात के 9:30 बज चुके थे.
वहां हम ने 2 पुलिस वालों को देखा और घर लौटने का रास्ता पूछने लगीं. उन्होंने हमें रास्ता बता दिया. हम उन के बताए हुए रास्ते में 15 मिनट चलने के बाद फिर खो गए. हमें डर भी लग रहा था क्योंकि रात हो गई थी. करीब 15 मिनट के बाद हम ने पुलिस की एक पैट्रोलिंग जीप देखी जिस में वही 2 पुलिस वाले अपने दोस्तों के साथ थे. उन्होंने हमें देखा और बताया कि उन्हें लगा था कि हम लोग उस जगह पर नए हैं, इसलिए खो गए होंगे. वे हम दोनों को ढूंढ़ते हुए आए थे. फिर उन्होंने अपनी जीप में बिठा कर हमारे घर पर हमें पहुंचा दिया. हमें पता चला कि हमारा घर उन के पैट्रोलिंग इलाके के अंदर नहीं आता, फिर भी उन्होंने हमें हमारे घर पर सहीसलामत छोड़ा. मैं आज तक उस घटना को भूल नहीं पाई हूं. मैं यह सोच कर आज भी कांप उठती हूं कि अगर उस रात वे लोग न मिले होते तो हम कैसे घर आते.
मधुस्मिता, भुवनेश्वर (ओडिशा)