उस के अंदर का दर्द किसी सुलगे हुए विस्फोटक के समान चेहरे पर झलक रहा था. किसी भी क्षण भयंकर विस्फोट हो सकता था और विस्फोट से हर कोई डरता है, हम भी. हमारा देशभक्त मित्र बड़ा परेशान नजर आ रहा था. मौसम तो सुहावना था लेकिन वह पसीनापसीना हो रहा था. उस के अंदर का दर्द किसी सुलगे हुए विस्फोटक के समान चेहरे पर झलक रहा था.
किसी भी क्षण भयंकर विस्फोट हो सकता था. विस्फोट से कौन नहीं डरता? हम सावधान थे लेकिन हमारा जिज्ञासु मन मान नहीं रहा था, वह जल्दी से जल्दी विस्फोट का परिणाम जानने को उत्सुक था. इस के लिए हम ने खुद उत्प्रेरक बनने का काम किया और आग में घी डालते हुए अपने परमप्रिय देशभक्त मित्र से कहा, ‘‘मित्र, क्या हुआ? अपनी सरकार के होते हुए भी चेहरे पर यह गुस्सा, यह परेशानी, तोबातोबा.’’ जैसी कि उम्मीद थी, हमारा देशभक्त मित्र एकदम से फट पड़ा, ‘‘क्या खाक अपनी सरकार है? किस मुंह से कह दें कि यह अपनी सरकार है?’’
‘‘अरे इसी चौखटे से चौड़े मुंह से कह दो जो तुम्हारे पास है,’’ हम ने मित्र को चिढ़ाते हुए कहा. यह सुन कर उस का मुंह तो बना लेकिन इस समय उस के अंदर का लावा इतना बलवती था कि वह खुद को बोलने से रोक नहीं पा रहा था. वह बिलकुल चोंच को आगे करते हुए कागा की तरह बोला, ‘‘अरे हम ने तो यह सरकार इसलिए बनवाई थी कि कश्मीर में आतंकवाद का बिलकुल सफाया हो जाए. लेकिन वहां तो उलटा हो रहा है. आएदिन आतंकवादी हमारे जांबाज सैनिकों को शहीद कर के तिरंगे में लपेट कर भेज रहे हैं. पहले तो कश्मीर घाटी ही आतंकवाद से त्रस्त और ग्रस्त थी, अब तो आतंकवादी जम्मू क्षेत्र को भी निशाना बना रहे हैं और कुछ लोग उन का साथ भी दे रहे हैं.’’
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