इंजीनियर साहब के बंगले पर आज बहुत भीड़ थी .परसों ही तो उसकी मृत्यु हुई थी.आज उसी की श्रद्धांजलि सभा थी.हाल में उसकी बड़ी सी फोटो रखी थी उसपर सुन्दर सी गुलाब के फूलों की माला चढाई गई थी. लोगों का हुजूम आ रहा था फूल चढ़ा कर अपनी श्रद्धांजलि के साथ उसकी तारीफों के कसीदे भी पढ़ रहे थे.
वह इंजीनियर साहब की पत्नी को बहुत प्यारा था, जब भी कहीं घूमने जाती अपने साथ की सीट पर उसे बैठाती. उसे देख कर कालोनी में कानाफूसी होती. पर आज इंजीनियर साहब स्वयं इतना बडा आयोजन कर रहे थे जबकि उसके जीते जी घर में वे स्वयं दोयम दर्जे पर थे.आज उनकी पत्नी श्वेत वस्त्रों में उदासीन सी उसकी फोटो के बगल में बैठी थीं. आज न कोई मेकअप न कोई श्रृंगार यहां तक की मांग भी सूनी-सूनी थी.
वहीं दूर मैदान में कालोनी में उसकी बिरादरी भी इकट्ठी थी और वे भी उसकी ही बातें कर रहे थे. खाने की खुशबू उन्हें वहां तक खींच लाई थी.
"भूरा तू क्यों इतना उदास है एक दिन तो सबको जाना ही है."कालू ने कहा .
"उसके स्वादिष्ट खाने में से बचा खाना रोज मुझे मिल जाता था पर अब...."कहते हुए टांगों के बीच मुंह को छिपा लिया.
"वो कोने वाले बाबू की मां की तेरहवीं में लोगों ने पत्तलों में इतना खाना छोड़ा था हम सबने भरपेट छककर खाया था."
ये भी पढ़ें- चल रही है मिसाइल
कालू जीभ लपलपाते हुए बोला. लेकिन यहां दोपहर से शाम हो गई लोग खाकर जाते जा रहे हैं पर पत्तलें बाहर ही नहीं आ रहीं. मरियल ने जीभ लपलपाते हुए कहाः "लगता है उसकी तेरहवीं हमें खाने नहीं मिलेगी."