एक सज्जन मुंह में पान चबाते हुए बोले, ‘‘अंधभक्ति का चोला ओढ़े इतनी जनता आती कहां से है, जबकि जिस से भी पूछो, सब कहेंगे कि हम तो अंधभक्त नहीं हैं, हम तो आंख खोल कर बाबाओं पर भरोसा करते हैं.’’

पान बेचने वाले दुकानदार ने कहा, ‘‘कोई धर्म कभी पाखंड का साथी नहीं होता, न ही मर्यादाहीन. फिर ये नईनई उपजें कहां से हो जाती हैं, जो भक्तों की श्रद्धा पर ही चोट कर जाती हैं. आंखें कितनी भी खोल कर रखो, जब अंतर्मन पर ही पट्टी बंधी है तो क्या खुलेंगी आंखें. भक्ति में इतनी शक्ति है कि बाबा गए अंदर तो भक्तों का शुरू हो जाता है तांडव बाहर. फिर वे न देखते आसपास, फिर मिटाते हैं वही जो वस्तुएं होती हैं खास.’’

वे सज्जन थोड़ा मुसकराए और बोले, ‘‘अच्छी भक्तों की बात उड़ाई, मुझे एक किस्से की याद दिलाई. कुछ समय पहले एक बाबा जेल गए थे, वहां का थानेदार ही उन का भक्त निकला और सारी सुधसुविधाएं जेल में दे दीं. अब बाबाजी भक्तों के लिए जेल में हैं, लेकिन हैं आराम से. ज्ञान बांटते हैं बाकी कैदियों को और जेल में भक्त जुटाते शान से. कुछ महीनों में बेल मिल जाती है, तो घर पर आराम से छुट्टियां बिताते हैं, कुछ तो जा कर विदेश भी घूम आते हैं. न्याय व्यवस्था की कमी सब को ले डूबी. बस, उभर पाए ये बाबा हैं, जो भक्तों को मोहजाल में फंसा ले जाते हैं.’’

आसपास के खड़े हुए व्यक्तियों के चेहरे पर एक मुसकान छा गई जैसे उन के मन की बात बिना बोले ही मैदान में आ गई.

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