सोहन लाल झारखंड की एक यूनिवर्सिटी में सीनियर प्रोफैसर थे. उन की उम्र 60 वर्ष हो चुकी थी. उन दिनों प्रोफैसर 62 वर्ष में रिटायर होते थे. वे शहर के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों में गिने जाते थे. शहर में उन का बड़ा सा मकान था. वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे. उन की एक ही संतान थी, एक बेटा, नवल. वह पढ़लिख कर सैटल हो चुका था. मुंबई में किसी प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. उस की भी शादी हो चुकी थी. नवल की पत्नी रेखा मुंबई के प्राइवेट स्कूल में टीचर थी. काफी सुखी व संपन्न परिवार था.
प्रोफैसर साहब की पत्नी कमला हाउसवाइफ थीं. देखनेसुनने में साधारण थीं, पर एक व्यावहारिक व कुशल गृहिणी थीं. इधर कुछ महीनों से वे बीमार चल रही थीं. प्रोफैसर साहब के रिटायर होने में एक साल से कम ही रह गया था. पर इस उम्र में भी वे रंगीनमिजाज थे. वे फिल्मी गाने सुना करते थे और गुनगुनाते भी रहते थे. सच तो यह है कि उन की असली आयु औफिशियल आयु से 4 साल ज्यादा ही थी. यह बात खुद प्रोफैसर ने अपने बेटे को बताई थी कि तेरे दादा कितने चालाक थे क्योंकि इस तरह वे 4 साल ज्यादा नौकरी कर सकेंगे.
मियांबीवी दोनों ने मिल कर रिटायरमैंट के बाद का प्लान बनाना शुरू कर दिया था. उन्होंने सोचा था कि साल के 6 महीने बेटे के साथ रहेंगे और बाकी अपने शहर में. उसी समय शिक्षकों की रिटायरमैंट उम्र बढ़ा दी गईर् थी. अब नए नियम के अनुसार, प्रोफैसर साहब को 65 साल में रिटायर होना था. अब उन्हें
3 साल और नौकरी करनी थी. मियांबीवी दोनों खुश थे. उन का बेटा नवल भी सुन कर खुश हुआ. नवल ने उन लोगों को लैपटौप दे रखा था और अकसर वीकैंड में मातापिता से वीडियो चैटिंग भी हो जाती थी.
प्रोफैसर साहब के यहां एक महरी थी, रीमा. वह पड़ोसी राज्य ओडिशा की आदिवासी औरत थी. वह अपने गांव में रहती थी. उस की 10 साल की बेटी थी जानकी. रीमा के पति ने उसे छोड़ कर दूसरी शादी कर ली थी. पति के जाने के बाद गांव में रीमा के लिए अपना और बेटी का गुजरबसर करना कठिन हो गया था. वहां आमदनी का जरिया बहुत सीमित था, इसलिए वह गांव छोड़ कर झारखंड के शहर में आ गई थी क्योंकि उस के कुछ रिश्तेदार पहले से ही यहां थे. शुरू में जब तक उसे काम नहीं मिला था, अपने रिश्तेदार के साथ रहती थी. धीरेधीरे 3-4 घरों में महरी का काम करने लगी थी और एक झोंपड़ी को किराए पर ले लिया था. उस की बेटी स्कूल पढ़ने जाती थी.
रीमा प्रोफैसर साहब के यहां लगभग 5 साल से काम कर रही थी. उन के परिवार का विश्वासपात्र बन चुकी थी. वह साधारण नैननक्श वाली पर आकर्षक दिखने वाली 30-32 साल की औरत थी. प्रोफैसर के बेटेबहू जब स्काइप पर मातापिता से वीडियो चैट पर होते तो कभी रीमा भी उन्हें दिख जाती थी. प्रोफैसर साहब की पत्नी कमला इधर अकसर बीमार रहती थीं. हालांकि प्रोफैसर अब 68 साल के हो चुके थे, पर कभीकभी अपनी कामवाली को ललचाई नजरों से देखा करते थे. यह बात रीमा से छिपी नहीं थी.
एक दिन कमला ने रीमा से कहा, ‘‘मु झ से अब ज्यादा काम नहीं हो पाता है. तुम मेरे घर में अब ज्यादा समय दो. रोजाना के काम के अलावा हमारा खाना भी बना दिया करो.’’
रीमा बोली, ‘‘मांजी, एक घर में काम करने से तो मेरा खर्च नहीं चलने वाला है. मु झे और 2 घरों में भी काम करना होता है.’’
प्रोफैसर साहब भी वहां खड़े थे. उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हारी पगार मैं बढ़ा दूंगा. बाकी के घरों का काम छोड़ दो. तुम्हें दिनभर इधरउधर दौड़ना भी नहीं पड़ेगा.’’
रीमा बोली, ‘‘यह तो ठीक है. पर मेरा भी एक पुराना डेरा है. वहां 2 महीने बाद लड़की की शादी है. उन्होंने उस समय 3-4 दिनों के लिए बाकी घरों से छुट्टी लेने को कहा है. मैं ने भी हां कर दी है, बीच में उन्हें धोखा नहीं देना चाहती हूं.’’
कमला बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं. तू 2 महीने वहां और काम कर और बाकी के घर छोड़ दे. शादी के समय तुम हमारे यहां सुबह जल्दी आ कर 2 घंटे में सब काम कर के वहां चली जाना. शादी के बाद उन का काम छोड़ कर सिर्फ मेरे घर का काम करना.’’
प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘ठीक है, कल से तुम्हारी पगार बढ़ा दी जाएगी और दिन का खाना भी यहीं खाना. मैडम जैसा कहें वैसा करो. पैसे की चिंता नहीं करना, जितना और लोग देते हैं उन से कुछ ज्यादा ही मिल जाएगा.’’
2 महीने बाद से अब रीमा प्रोफैसर के घर में सारा दिन रहती थी. घर का सारा काम देखने लगी थी. पर शाम को अपनी झोंपड़ी वापस चली जाती थी. तब तक उस की बेटी जानकी भी स्कूल से लौट आती थी और मां का इंतजार करती थी. रीमा को शाम को लौटते वक्त भी प्रोफैसर साहब के यहां से कुछ खानेपीने का सामान मिल ही जाता था, जिस से 2 जनों का पेट भर जाता था.
कुछ महीनों बाद प्रोफैसर साहब की पत्नी कमला की मृत्यु हो गई. लंबी अवधि तक उन की जीवनसंगिनी रही थीं वे. प्रोफैसर काफी दुखी थे. बेटाबहू और निकट संबंधी आए थे. कुछ तो 2-3 दिनों में ही चले गए थे. नवल और रेखा करीब 3 सप्ताह तक रुके थे, फिर वे भी मुंबई लौट गए थे. जाने से पहले नवल ने पिता से कहा, ‘‘पापा, अब आप भी चल कर हमारे साथ रहें. यहां अकेले क्या करेंगे आप?’’
प्रोफैसर साहब ने कहा, ‘‘अब तो 2 महीने ही बची है नौकरी. रिटायर होने के बाद आऊंगा तुम लोगों के पास. तब तक यहां पढ़नेपढ़ाने में दिन कट जाएंगे.’’
अब प्रोफैसर सोहन लाल रिटायर हो चुके थे और घर में अकेले रह गए थे. रीमा पहले की ही तरह घर का पूरा काम खत्म कर, शाम को प्रोफैसर को चाय पिलाती और रात का खाना टेबल पर लगा कर चली जाती थी. चूंकि अब कमला नहीं रहीं, तो बीच में अकसर दोपहर में 2-3 घंटे के लिए रीमा अपने घर चली जाती थी. कुछ दिन यों ही बीत गए थे.
एक दिन सुबहसुबह प्रोफैसर साहब फिल्मी गाना सुन रहे थे. रीमा चाय बना कर उन की टेबल पर दे गई थी. तभी बेटे नवल का स्काइप कौल आया था. उन्होंने मोबाइल पर ही वीडियो चैट शुरू किया था. बेटे ने देखा कि पापा चाय पी रहे थे, साथ में रोमांटिक गाना भी सुन रहे थे तो वह बोला, ‘‘पापा, आज मु झे आप को देख कर खुशी हुई. इसी तरह आप नौर्मल रहिए तो हम लोग भी चिंता से मुक्त रहेंगे.’’
इस चैट के दौरान बहू रेखा से भी बात हुई थी, बीच में प्याली उठाने रीमा आई थी, तो उस ने भी रेखा को नमस्ते कहा था, रेखा ने उसे पापा का खयाल रखने को कहा.
प्रोफैसर साहब नाश्ता करने बैठे थे. अभी रीमा परांठे बना ही रही थी, वे उसे देखे जा रहे थे, उस के गदराए शरीर को, उस के मांसल उरोजों को जो टाइट ब्लाउज के अंदर कसमसा रहे थे मानो फाड़ कर बाहर आना चाह रहे थे. उस ने बालों में ताजे फूलों का गजरा लगाया था जिस की भीनीभीनी खुशबू प्रोफैसर को मदमस्त कर रही थी. रीमा ने प्लेट में परांठा और भुजिया ला कर प्रोफैसर के सामने रख दिया था. उन्होंने कहा, ‘‘तुम भी अपना नाश्ता कर लो.’’
वह भी अपना नाश्ता ले कर एक किनारे स्टूल पर बैठ गई थी. प्रोफैसर साहब ने कहा, ‘‘इधर ही मेरे पास की कुरसी पर आ जाओ न.’’
पहले तो उसे संकोच हुआ, पर जब प्रोफैसर ने कहा, ‘‘आओ न, मेरी खातिर. मु झे अच्छा लगेगा,’’ वह उन की बगल में आ कर बैठ गई थी. उन्होंने उस के जूड़े को सूंघ कर कहा, ‘‘अच्छे हैं. अभी भी काफी खुशबू है इन में.’’
फिर वे नाश्ता छोड़ कर उस के बालों को सहलाने लगे थे और धीरेधीरे उस की पीठ भी सहलाने लगे. करीब 10 साल बाद किसी मर्द के स्पर्श से रीमा भी रोमांचित हो उठी थी. उन्होंने कहा, ‘‘तुम आज क्यों बिजली गिरा रही हो?’’
तब तक वह झटक कर अलग होते हुए बोली, ‘‘बिजली तो बाद में गिरेगी. अभी दूध उफान पर है. बस, गिरने ही वाला है.’’
और वह गैस बंद करने किचन में चली गई. प्रोफैसर ने कहा, ‘‘और मेरे अंदर जो उफान है, उस का क्या होगा?’’
तब रीमा ने कहा, ‘‘वह सब छोडि़ए, अभी चाय बनाऊं या कौफी?’’
उस के उरोजों की तरफ देखते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आज चायकौफी या कुछ और भी.’’
रीमा भी इठला कर बोली, ‘‘आप का इतना रंगीनमिजाज तो पहले कभी नहीं देखा था. यह लीजिए आज कौफी से ही काम चलाइए?’’
अगले दिन फोन कर बेटे ने उन्हें मुंबई आने को कहा था. वे बेटे के पास मुंबई जा रहे थे. जाने से पहले रीमा को बुला कर कहा, ‘‘मैं कुछ दिनों के लिए मुंबई जा रहा हूं, तुम्हें एक मोबाइल फोन और घर की चाबी दे रहा हूं. बीचबीच में घर की साफसफाई करती रहना. मैं जा तो रहा हूं, पर मु झे तेरे साथ की आदत पड़ गई है. मैं जल्द ही आऊंगा. आने के पहले तुम्हें फोन कर दूंगा, तब आ जाना.’’
प्रोफैसर साहब मुंबई तो गए, पर 2 सप्ताह में ही वापस आ गए थे. बेटे ने रोकना चाहा, तो कुछ बैंक के काम, कुछ फाइनल सैटलमैंट, पैंशन आदि का बहाना कर वहां से चल दिए थे. उन्होंने रीमा को फोन कर अपना प्रोग्राम बता दिया था. जब वे घर लौटे तो रीमा घर पर मौजूद थी.
घर पूरी तरह सुव्यवस्थित और साफसुथरा था. खुशबूदार अगरबत्ती भी जल रही थी और साथ में जूड़े के फूल की खुशबू थी. रीमा ने दरवाजा खोला ही था कि झट से उन्होंने दरवाजा बंद कर उसे आगोश में लेते हुए कहा, ‘‘यह कैसा जादू किया है तुम ने? मुझे तुम्हारे बिना वहां अच्छा नहीं लग रहा था. दिल कर रहा था कि अगले दिन ही लौट आऊं.’’
रीमा ने दिखावे के लिए आधे मन से उन से छूटने का नाटक किया था और प्रोफैसर साहब ने अपना बंधन थोड़ा ढीला किया तो वह छूटते हुए बोली, ‘‘अच्छा चलिए, पहले नहाधो कर नाश्तापानी कीजिए.’’