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"पर, तुम्हें हैरत क्यों हैं इस बात पर?” “क्योंकि, मुझे जीने की कोई वजह दिखाई नहीं देती.” “जीने की वजह तो तुम ही हो… तुम हो, इसलिए तुम जियो.” शायद वह ठीक कह रही थी… अभी तक होने का अर्थ उसे मान लेना चाहिए कि उसे अभी और होना है…

वह कहती रही, “जिंदगी किसी और के लिए हो, उस से पहले जिंदगी को जिंदगी के लिए होना पड़ता है. जब जिंदगी छूटने लगती है, तो सिर्फ और सिर्फ अपना आज दिखाई देता है… बस जिंदा रहते हुए हमेशा दूसरों के बारे में पहले सोचना सिखाया जाता है. हम ऐसे दोगले समाज में रहते हैं, जहां हर व्यक्ति सोचता पहले अपने बारे में है, लेकिन दूसरे को सिखाता है कि अपने बारे में सोचना गलत है. हमें अपने बच्चों को शुरू से ये सिखाना चाहिए कि वह पहले अपने बारे में सोचें और इस पर ग्लानि न करें. इनसान तभी दूसरे की सोचेगा जब वह स्वस्थ होगा. वैसे भी कोई स्वयं में संतुष्ट हो, तभी वह दूसरे को कुछ दे पाएगा न. रीता घड़ा क्या किसी की प्यास बुझाता है?” बोलतेबोलते वह कुछ हांफने लगी… शायद थक गई तो चुप हो गई.

कमरा एकदम शांत था… नर्स कमरे से बाहर चली गई थी. थकान और दवाओं का असर फिर तारी हो चला था, दोनों ही फिर एक सी मूर्छा में हो गईं. मिलने के समय पापा आए, तो वह कुछ बोल नहीं पाई… यह पहली बार था कि उन के आने पर वह पूरे होश में थी. पापा ने भी कुछ न कहा... शायद कोई यह नहीं जानता था कि क्या कहने से दूसरे को दर्द होगा और क्या कहने से सुकून मिलेगा.

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