मिट्ठी का काम दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा था. उस की ख्याति महल्ले से निकल कर पूरे शहर में फैल गई. इस बीच उस के दोनों भाई भी अपनी पसंद की लड़कियों से विवाह कर चुके थे. दोनों दूसरे शहरों में कार्यरत थे. मातापिता के साथ केवल मिट्ठी ही रहती थी.
उस दिन सुबह से ही मिट्ठी की तबीयत ठीक नहीं थी. यद्यपि उस के सहायक कार्य कर रहे थे, पर मिट्ठी सबकुछ उन के भरोसे छोड़ने की अभ्यस्त नहीं थी. विवाहों का मौसम होने के कारण कार्य इतना अधिक था कि अपनी दुकान बंद करने की बात वह सोच भी नहीं सकती थी.
सांझ गहराने लगी थी. मिट्ठी को लगा जैसे बुखार तेज हो रहा था. आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा था. उस ने सोचा, आज काम थोड़ा जल्दी बंद कर देंगे, पर इस से पहले कि वह कोई निर्णय ले पाती, सामने एक कार आ कर रुकी और एक युवकयुवती उतर कर दुकान में आए.
‘हां, यही है वह बुटीक भैया, जिस के बारे में पल्लवी ने बताया था,’ युवती साथ आए युवक से कह रही थी.
‘यह बुटीक नहीं एक साधारण सी दुकान है. बताइए, हम आप की क्या सेवा कर सकते हैं,’ मिट्ठी बोली थी.
‘पर आप काम असाधारण करती हैं. मेरी सहेली पल्लवी की शादी का जोड़ा तो इतना अनूठा था कि सब देखते ही रह गए. वह कह रही थी कि आश्चर्य की बात तो यह है कि इसे डिजाइन करने वाली ने कभी शादी का जोड़ा नहीं पहना,’ वह युवती बोले जा रही थी.
‘ओह, श्रीवाणी ऐसा नहीं कहते. अपने काम की बात करो,’ उस का भाई श्रीनाथ बोला था.