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रस्मे विदाई
बरसों बाद दिन आया मिट्ठी की विदाई का, लेकिन वह रोई नहीं. वह तब नहीं रोई थी जब सारा समाज उसे रुलाना चाहता था, फिर भला वह आज क्यों रोती?
भाग - 1
इतने ऊंचे स्तर का घरवर और आप ने उन्हें अच्छे दहेज तक का प्रलोभन नहीं दिया? पूरी बिरादरी में कहीं देखा है ऐसा सजीला युवक?’ देवदत्त बाबू बोले थे.
भाग - 2
इस बीच मिट्ठी के एमए पास करने के बाद उसे बाहर जा कर नौकरी करने की पिता ने आज्ञा नहीं दी. उन्हें एक ही डर था कि लोग क्या कहेंगे कि बेटी की कमाई खा रहे हैं.
भाग - 3
‘कोई बात नहीं, मैं बुरा नहीं मानती. बताइए, आप को क्या चाहिए,’ मिट्ठी ने शीघ्र ही उन्हें निबटाने की गरज से पूछा था.
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