सरला ने जम्मू से चावल मंगवाए थे. वापस आने पर सामान आदि खोला. सोचा, सरला को फोन करती हूं, आ कर अपना सामान ले जाए. तभी 2 लोगों की चीखपुकार शुरू हो गई. गंदीगंदी गालियां और जोरजोर से रोना- पीटना.

मैं घबरा कर बाहर आई. शर्मा आंटी रोतीपीटती मेरे गेट के पास खड़ी थीं. लपक कर बाहर चली आई मैं.

‘‘क्या हो गया आंटी, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘अभीअभी यह आदमी 205 नंबर से हो कर आया है. अरे, अपनी उम्र का तो खयाल करता.’’

अंकल चुपचाप अपने दरवाजे पर खड़े थे. क्याक्या शब्द आंटी कह गईं, मैं यहां लिख नहीं सकती. अपने पति को तो वे नंगा कर रही थीं और नजरें मेरी झुकी जा रही थीं. पता नहीं कहां से इतनी हिम्मत चली आई मुझ में जो दोनों को उन के घर के अंदर धकेल कर मैं ने उन का गेट बंद कर दिया. मन इतना भारी हो गया कि रोना आ गया. क्या कर रहे हैं ये दोनों. शरम भी नहीं आती इन्हें. जब जवानी में पति को मर्यादा का पाठ नहीं पढ़ा पाईं तो इस उम्र में उसी शौक पर चीखपुकार क्यों?

सच तो यही है कि अनैतिकता सदा ही अनैतिक है. मर्यादा भंग होने को कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. पतिपत्नी के रिश्ते में पवित्रता, शालीनता और ईमानदारी का होना अति आवश्यक है. शर्मा आंटी की खूबसूरती यदि जवानी में सब को लुभाती थी तब क्या शर्मा अंकल को अच्छा लगता होगा. हो सकता है पत्नी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल भी किया हो.

जवानी में जोजो रंग पतिपत्नी घोलते रहे उन की चर्चा तो आंटी मुझ से कर ही चुकी थीं और बुढ़ापे में उसी टूटी पवित्रता की किरचें पलपल मनप्राण लहूलुहान न करती रहें ऐसा तो मुमकिन है ही नहीं. अनैतिकता का बीज जब बोया जाता तब कोई नहीं देखता, लेकिन जब उस का फल खाना पड़ता है तब बेहद पीड़ा होती है, क्योंकि बुढ़ापे में शरीर इतना बलवान नहीं होता जो पूरा का पूरा फल एकसाथ डकार सके.

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