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लेखक-कमल कुमार

शरद और आराधना उस दौर से गुजर रहे थे जहां अकेलापन उन के लिए असहनीय था. पतझड़ सी दोनों की जिंदगी यदि एक ही राह पर चल पड़ती तो क्या उस में कुछ गलत था?

संजीव उसे चैकइन करवा कर लौट गया था. अभी समय काफी था. तो भी, वह सिक्योरिटी चैक कर के अंदर जा कर ही बैठेगा. लंबा कौरिडोर चल कर वह निर्धारित गेट के सामने लाउंज में आ गया था. पढ़ने के लिए उस ने 2 अखबार उठा लिए थे. उस ने नजर इधरउधर दौड़ाई थी. यह फ्लाइट डायरैक्ट दिल्ली की थी. इस में इंडियन ज्यादा होते हैं. वह संजीव और प्रोमिला के पास 3 महीने से था. पर बेगाने अमेरिका में हर पल भारी लगा था.

पहले जब वह शांति के साथ बेटे के पास आता था तो कुछ ठीक लगता भी था पर अब तो 3 महीने 3 जिंदगियां लगीं. 60 के पार उम्र पहुंच गई है उस की. पत्नी शांति ब्लडप्रैशर की मरीज थी. शादीशुदा जिंदगी के बहुत खूबसूरत लम्हे दोनों ने साथसाथ गुजारे थे. खुश रहने वालों में से थी शांति. उन्हें भी खुश रखती थी. लेकिन बीमारी पर उस का बस नहीं था. 2 साल पहले ही देहांत हुआ था. शांति के बिना जैसे उस की जिंदगी थम सी गई थी. रात तो बेचैनी में बीतती थी, दिन भी काटे नहीं कटता था. सारा दिन बालकनी में चेयर डाल कर बैठे आतेजाते लोगों को देखते. अमेरिका में तो यह भी नहीं कर सकते थे. सारा दिन कमरों में बंद रहो. वीकैंड में संडे को घर की सफाई, ग्रौसरी शौपिंग कर लो. संजीव और प्रोमिला जहां जाते वहां कालेगोरे, इंडियन सब होते थे और वह घुलमिल नहीं पाता. इसलिए, रातें भी अकेले ही रहनी होती थीं. अब जिद कर के घर, दिल्ली लौट रहा था. बेशक दिल्ली के बसंतकुंज एरिया में रहता था और वहां भी अड़ोसपड़ोस में लोग एकदूसरे से ज्यादा मेलजोल नहीं रखते थे लेकिन फिर भी आतेजाते एकदूसरे से हायहैलो तो हो जाती थी. एकदूसरे के घर में क्या हो रहा है, काम करने वाली मेड ही सब खबर दे देती. कालोनी की न्यूज जानने का अच्छा न्यूज चैनल का काम करती थी वह.

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