वह अभी अपने बंधन को ढीला करने ही वाला था कि ‘सुंदर, अति सुंदर’ का अपरिचित स्वर सुन कर केचल चौंक उठी. वह तीर की भांति, देवालय से, दृष्टि धरती पर गड़ाए घर की ओर भाग गई.