श्रुति का दिमाग फिर से परेशान था.  ट्रे में थी वह. अपने आप पर उसे  गुस्सा आ रहा था, ‘तू क्यों जा रही है वहां’. उस का मन खिन्न हो गया. पूरे 15 वर्ष पहले सबकुछ होते हुए भी उसे अपना घर छोड़ना पड़ा था. दिवाकर के प्रति नफरत आज भी बनी हुई थी. नहीं चाहते हुए भी यादें उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं.

आज श्रुति उम्र के तीसरे पड़ाव की दहलीज पर है. जिंदगी में एक तरह से उस के पास सबकुछ था पर असल में उसे कुछ नहीं मिला. दिवाकर से उस ने अपनी मरजी से शादी की थी, मम्मीपापा ने भी कोई एतराज नहीं किया. उस में कोई कमी भी तो नहीं थी जो वे मना करते. बिना शर्तों के उस की शादी दिवाकर से हुई थी. वह अपने इस निर्णय से खुश थी.

शादी के कुछ समय बाद एक दिन वह बोला, ‘श्रुति, मैं ने तुम्हारे लिए नौकरी ढूंढ़ ली है.’ श्रुति हैरान हो गई थी क्योंकि उस को नौकरी करना कभी भी अच्छा नहीं लगता था पर दिवाकर ने उस के चेहरे पर आतेजाते भावों की तरफ से अनजान बन कर अपनी बात को जारी रखा, ‘मैं ने एक विज्ञापन कंपनी में बात की है. तुम्हें तो बस नौकरी के लिए एक अरजी लिख कर उस पर अपने हस्ताक्षर कर के देने हैं, आगे मैं देख लूंगा. नौकरी तो तुम्हें शतप्रतिशत मिल जाएगी.’

उस ने दिवाकर को मना भी किया था, उसे समझाया भी था कि वह अच्छाखासा कमा लेता है और अपनी जरूरतें भी इतनी ही हैं. वह घर संभाल लेगी. उस का मन नौकरी करने का नहीं है पर दिवाकर के जरूरत से ज्यादा दबाव डालने पर उस ने नौकरी के लिए अरजी लिख कर दे दी. कुछ दिन बाद ही नियुक्तिपत्र आ गया.

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