बच्चों की छुट्टी हो और अपनी नहीं, तो मुसीबत रहती है. जरा निश्ंिचतता का अनुभव कर के देर से उठी थी, पर यह देख कर मूड बिगड़ गया कि फूलमती ने फिर गोल मारा था. सब काम हड़बड़ी में हुआ. सुबहसुबह रसोईघर से उस के द्वारा बरतनों की उठापटक की मधुर ध्वनि से जरा चैन पड़ता था और उसी ध्वनि के इंतजार में आज देर तक रजाई में पड़ी रही. अब जैसेतैसे तैयार हो कर निकलने को ही थी कि छोटे साहब, जो अब तक बड़े के साथ दूसरे कमरे में हंगामा करने में व्यस्त थे, हाजिर हुए.

‘‘मां, आज तो मेरी परियोजना जरूर तैयार करनी है.’’

‘‘क्यों जी, देखते नहीं, कितनी व्यस्त हूं. ऊपर से फूलमती भी नहीं आई है. कल रविवार है न, कल देखूंगी. अरे, नहींनहीं, कल तो हमारे यहां ही किट्टी पार्टी है. ऐसा करो, परसों शाम को याद दिलाना.’’

‘‘ओफ्फोह, मां, आप ने परसों भी यही कहा था कि दूसरे शनिवार को याद दिलाना. अब सोमवार को अध्यापिका डांटेंगी,’’ अमित का पारा चढ़ता जा रहा था. वैसे वह भी ठीक था अपनी जगह. कब से तो पीछे पड़ा था. मुझे फुरसत नहीं मिल पा रही थी. मोहित को पढ़ाई से ही समय नहीं मिल पाता था. स्कूल वाले भी खूब हैं. जानते भी हैं कि 7-8 साल का बच्चा अकेले पर्वत का माडल नहीं बना सकता. डाल देते हैं मुसीबत मांबाप के सिर पर. स्कूल में ही क्यों नहीं बनवाते यह सब?

‘‘देखो अमित, तुम सोमवार को अध्यापिका से कह देना कि मां की तबीयत खराब थी और पिताजी दौरे पर गए हुए थे. बाजार से सामान कौन लाता? ठीक है? अब जाने दो मुझे.’’

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