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संसार में बहुत सारे रंग होते हैं और ये सारे रंग सभी को खुशियां प्रदान करते हैं. परंतु कभीकभी कुछ रंग किसी के जीवन में कष्ट और आंखों में आंसू भर जाते हैं. वह काला रंग, जिस ने उस की आंखों से इंद्रधनुष के सारे रंग चुरा लिए थे और उस के बदन के खिले हुए फूलों को तोड़ कर मसल दिया था, आजकल कहीं नजर नहीं आता था. वह उस से मिलने के लिए बेताब थी. बेकरारी से उस से मिलने के लिए निर्धारित स्थल पर इंतजार करती, परंतु वह न आता. वह निराश हो जाती और हताश हो कर घर वापस लौट आती. वह उस की गली में भी कई बार गई परंतु वह एक बार भी अपने कमरे पर नहीं मिला. पड़ोस में किसी से पूछने का साहस वह न कर पाई. फोन पर भी वह नहीं मिलता था. अकसर उस का फोन बंद मिलता, कभी अगर मिल जाता तो बहाना बना देता कि काम के सिलसिले में कुछ अधिक व्यस्त है, खाली होते ही मिलेगा और वह उसे स्वयं ही फोन कर लेगा, वह परेशान न हो.

परंतु वह परेशान क्यों न होती. काले रंग ने उस के लिए परेशान होने के बहुत सारे रास्ते खोल दिए थे. वह उन रास्तों से गुजरने के लिए बाध्य थी. उस के शरीर में व्याप्त काला रंग अपना आकार बढ़ाता जा रहा था. वह इतना ज्यादा चिंतित रहने लगी थी कि उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे, जैसे पूरे चेहरे पर किसी ने बहुत सारी बर्फ डाल दी हो. उस की यह स्थिति देख कर उस के घर के लोगों के चेहरों के रंग भी बदल गए थे. उस की निगाह उन लोगों की तरफ नहीं उठ पाती थी, परंतु जब भी उठती तो उसे अपने ही परिजनों के चेहरों पर इतने सारे रंग नजर आते कि वह डर जाती... उन सभी की आंखों में घृणा, क्रोध, आक्रोश, वितृष्णा, तिरस्कार और अविश्वास के गहरे रंग भरे हुए थे और ये सभी रंग उस से एक ही प्रश्न बारबार पूछ रहे थे, ‘क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्या कर डाला है तुम ने? इतना सारा काला रंग कहां से ले आई हो कि हम सब का दम घुटने लगा है. कुछ बताओ तो सही.’ परंतु वह कुछ न बता पाती. किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का साहस उस के पास नहीं था. उस ने जो किया था, वह किसी भी तरह क्षम्य नहीं था.

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