उस की आंखों में इंद्रधनुष था. उस के जीवन में पहली बार वसंत के फूल खिले थे, पहली बार चारों तरफ बिखरे हुए रंग उस की आंखों को चटकीले, चमकदार और सुंदर लगे थे, पहली बार उसे पक्षियों की चहचहाहट मधुर लगी थी, पहली बार उस ने आमों में बौर खिलते देखे थे और रातों को उन की खुशबू अपने नथुनों में भरी थी, पहली बार उस ने कोयल को कूकते हुए सुना था और पहली बार उसे आसमान बहुत प्यारा व शीतल लगा था. अपने चारों तरफ बिखरे हुए प्रकृति के इतने सारे रूप और रंग उस ने पहली बार देखे थे और उन्हें बाहरी आंखों से ही नहीं, मन की आंखों से भी अपने अंदर भर कर उन की सुंदरता और शीतलता को महसूस किया था, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.
उस का मन अब पुस्तकों में नहीं लगता था. सफेद कागज पर छपे काले अक्षरों पर अब उस की निगाह नहीं टिकती थी. अब उस का मन पता नहीं कहांकहां, किन जंगलों, पर्वतपहाड़ों, रेगिस्तान, मैदानों और बीहड़ों में भटकता रहता था. उस के मन को निगाहों के रास्ते पता नहीं किस चीज की तलाश थी कि वह रातदिन बेचैन रहती थी, खोईखोई रहती थी. लोगों के टोकने पर उसे होश आता कि वह स्वयं में ही कहीं खो गई थी. उस की अवस्था पर लोग हंसते, परंतु वह तनिक भी विचलित न होती. वह खोई रहती एक ऐसी दुनिया में, जहां केवल वह थी, फूल थे, नाना प्रकार के रंग थे और आंखों को शीतलता प्रदान करने वाला खुला आसमान था.