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उस की आंखों में इंद्रधनुष था. उस के जीवन में पहली बार वसंत के फूल खिले थे, पहली बार चारों तरफ बिखरे हुए रंग उस की आंखों को चटकीले, चमकदार और सुंदर लगे थे, पहली बार उसे पक्षियों की चहचहाहट मधुर लगी थी, पहली बार उस ने आमों में बौर खिलते देखे थे और रातों को उन की खुशबू अपने नथुनों में भरी थी, पहली बार उस ने कोयल को कूकते हुए सुना था और पहली बार उसे आसमान बहुत प्यारा व शीतल लगा था. अपने चारों तरफ बिखरे हुए प्रकृति के इतने सारे रूप और रंग उस ने पहली बार देखे थे और उन्हें बाहरी आंखों से ही नहीं, मन की आंखों से भी अपने अंदर भर कर उन की सुंदरता और शीतलता को महसूस किया था, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.

उस का मन अब पुस्तकों में नहीं लगता था. सफेद कागज पर छपे काले अक्षरों पर अब उस की निगाह नहीं टिकती थी. अब उस का मन पता नहीं कहांकहां, किन जंगलों, पर्वतपहाड़ों, रेगिस्तान, मैदानों और बीहड़ों में भटकता रहता था. उस के मन को निगाहों के रास्ते पता नहीं किस चीज की तलाश थी कि वह रातदिन बेचैन रहती थी, खोईखोई रहती थी. लोगों के टोकने पर उसे होश आता कि वह स्वयं में ही कहीं खो गई थी. उस की अवस्था पर लोग हंसते, परंतु वह तनिक भी विचलित न होती. वह खोई रहती एक ऐसी दुनिया में, जहां केवल वह थी, फूल थे, नाना प्रकार के रंग थे और आंखों को शीतलता प्रदान करने वाला खुला आसमान था.

आसमान पर उस की निगाहें टिकी रहतीं. वहां धुनी हुई रुई से सफेद बादलों के टुकड़े हलकेहलके तैरा करते. उन बादल के टुकड़ों की मंद गति उस के मन को बहुत भाती. देखतेदेखते आषाढ़ आ गया और आसमान में बादलों की घटाएं घिरने लगीं. घटाओं ने नीले आसमान को अपनी काली, घनी जुल्फों से ढक लिया. परंतु उसे बुरा न लगा क्योंकि काली घटाएं भी उस के मन को बहुत भाने लगी थीं. फिर घटाओं ने अपनी जुल्फों को लहराते हुए छोटीछोटी बूंदें प्यासी धरती के आंचल पर बिखरा दीं. बूंदों के धरती पर गिरते ही सोंधी सी खुशबू उस के नथुनों में समा गई और वह बावली सी हो गई. वह और ज्यादा भटक गई और इसी भटकन के दौरान उस ने आसमान में एक शाम को इंद्रधनुष देखा, जो इतना मोहक और सुंदर था कि वह उस इंद्रधनुष के गहरे रंगों में बहुत देर तक खोई रही और फिर उसे पता ही न चला कि धीरेधीरे वह इंद्रधनुष कब उस की आंखों में आ कर बैठ गया. आंखों में इंद्रधनुष के आते ही वह अपने में खो सी गई. उस का मन कुछ पाने की तलाश में भटकता रहा, और फिर एक दिन उस की आंखों के सात रंगों में एक और रंग आ कर बैठ गया, यह उसे बहुत भला लगा, परंतु अपनी आंखों में बसे इंद्रधनुष के कारण वह यह नहीं देख सकी कि जो नया रंग उस की आंखों में आ कर बस गया है, उस का रंग बहुत ही भद्दा और काला सा है. इस अवस्था में एक मासूम और जवान हो रही लड़की के लिए केवल रंग महत्त्वपूर्ण होते हैं. वह उन के प्रभाव से अपरिचित होती है. उसे पता नहीं चलता कि उन रंगों के साथ वह एक खतरनाक खेल खेलने जा रही है.

खैर, उस वक्त उसे वह काला रंग भी इंद्रधनुष के सात रंगों में से एक लगा… इतना मोहक, सुंदर, सुखद और प्यारा कि वह उस के रंग में रंग गई. वह काला रंग उस की आंखों के इंद्रधनुष के रंगों में इस कदर घुलमिल गया था कि वह उसे गुलाबी रंग जैसा लगता. अपनी सपनीली आंखों से जब वह उस काले रंग को देखती तो वह गुलाबी रंग बन कर उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर जाता, क्योंकि वह स्वयं सुनहरे रंग की होती हुई भी दूसरों की निगाहों को गुलाबी रंग जैसी लगती थी. उस ने उस रंग को अपने जीवन के हर पल में सम्मिलित कर लिया था. काले रंग ने एक दिन उस से कहा, ‘‘क्या हम यों ही इंद्रधनुष देख कर अपने मन को बहलाते रहेंगे, बादलों के उमड़नेघुमड़ने से क्या हमारे मन को सुख प्राप्त हो सकेगा? बारिश की फुहारों से भीग कर क्या हम अपने मन को तृप्त करते रहेंगे? क्या यही हमारा जीवन है?’’

‘‘तो हम और क्या करें?’’ गुलाबी रंगवाली लड़की ने, जिस की आंखों में इंद्रधनुष था, उदास स्वर में कहा.

आजकल घर में उसे डांट पड़ने लगी थी. उस की उदासीभरी चुप्पी से घर वालों को उस के चरित्र के ऊपर संदेह होने लगा था और कई चौकन्नी आंखें उस के इर्दगिर्द मंडराने लगी थीं. उन सतर्क और जासूस निगाहों से उसे कोई कष्ट नहीं होता था क्योंकि उस की स्वयं की निगाहें ही इस कदर भटकी हुई थीं कि दूसरों की निगाहों को वह देख नहीं पाती थी, परंतु जब उस के आचारव्यवहार को देख कर घर वाले, विशेषकर उस की मां उसे बारबार टोकतीं, बातोंबातों में कुछ ऐसा कह देतीं कि उस के कोमल हृदय को गहरी ठेस लगती और वह कराह कर रह जाती.

उस की कराह को मम्मी नहीं सुन पातीं या सुन कर भी अनसुना कर देतीं और उसे डांटती ही चली जातीं, उस के दिल में होने वाले घावों की परवा किए बिना. तब उस को बेहद कष्ट होता, परंतु अपने दिल का हाल न वह मां को बता सकती थी न किसी और को. अपने मन की तकलीफ को वह काले रंग से भी कैसे कहती, क्योंकि वह जब भी उस से अकेले में मिलता, उस के अपने रंग होते और वह उन रंगों को चटकदार बनाने के प्रयास में लगा रहता. वह कुछ ऐसे रंगों की बात करता जो गुलाबी रंगवाली लड़की के रंगों से मेल नहीं खाते थे.

‘‘प्यार के कुछ रंग हम अपने जीवन में भी भर लें, तो…’’ काले रंग ने उसे अपनी जद में लेते हुए कहा.

‘‘वे तो हमारे जीवन में हैं, इतने सारे रंग, जो चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, मेरी आंखों में बस गए हैं, वे सब प्यार के ही तो रंग हैं जिन के सहारे हम जी रहे हैं,’’ उस ने भोलेपन से कहा. वह सचमुच भोली थी, क्योंकि उस का रंग गुलाबी था और गुलाबी रंग प्यार का प्रतीक होता है. इस रंग में छलकपट नहीं होता. परंतु काला रंग बहुत शातिर, चतुर और चालाक था. उसे पता था कि गुलाबी रंग को किस प्रकार मटियामेट कर के काला बनाया जा सकता है. ‘‘तुम बहुत भोली हो,’’ काले रंग ने उस के ऊपर घटाओं की तरह छाते हुए कहा. उस ने उस का हाथ पकड़ लिया और अपने सीने पर रखते हुए आगे कहा, ‘‘इतने सारे रंग जो प्रकृति में चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, इन्हें देख कर हम अपने मन को संतोषभरा सुख प्रदान कर सकते हैं, परंतु हमारे तन को सुख देने वाले रंग कुछ और ही होते हैं.’’

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