लेखक - गायत्री ठाकुर, Hindi Kahaniya : ‘‘मौम घर में ही होंगी, वे भला कहां जा सकती हैं. डैड प्लीज, आप बच्चों जैसी बातें मत करो. हो सकता है वे किसी काम में व्यस्त हों,  इसलिए दरवाजा खोलने में देरी हो रही होगी. आप थोड़ी देर और प्रतीक्षा करें.’’

आरव, तुम मेरी बात नहीं समझ पा  रहे हो. मैं पिछले आधे घंटे से दरवाजे के बाहर खड़ा हूं, कितनी बार डोरबेल बजा  चुका हूं, लेकिन अंदर से कोई जवाब  नहीं आ रहा. ऐसा लग रहा है जैसे बाहर से डोरलौक कर के वह कहीं चली गई है.’’

‘‘डैड, हो सकता है मौम किसी के घर गई हो या फिर मार्केट या कहीं और गई हो, आप उन के मोबाइल पर कौल क्यों नहीं कर लेते?’’ फोन के दूसरी तरफ से आरव का झुंझलाता स्वर गूंज उठा था.

‘‘उसे कितनी बार कौल कर चुका हूं, फोन स्विचऔफ है,’’ कबीर ने अपनी परेशानी समझाने की कोशिश की. दिल्ली में अपने दोस्तों के साथ पार्टी एंजौय कर रहा उस का 20 वर्षीय बेटा आरव सिचुएशन की गंभीरता को समझने में असमर्थ था.

‘‘क्या आप ने मौम के किसी फ्रैंड को कौल कर के पता किया? हो सकता है उन में से किसी को कुछ पता हो. डैड, आप बेवजह परेशान हो रहे हो,’’ आरव  ने चिढ़ते हुए फोन कट कर दिया.

उस की शादीशुदा जिंदगी के 25 वर्षों में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि वह औफिस से घर लौटा हो और नीता उस की प्रतीक्षा में घर के दरवाजे पर  खड़ी न  मिली हो. उन दोनों के बीच चाहे कितना भी झगड़ा, कितना भी वादविवाद हुआ हो, तब भी उसे इस प्रकार से घर के बाहर  प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. जाने कितनी बार उस ने नीता को भलाबुरा कहा था, उस के  आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचाई थी.  उस की बातों से आहत हो कर नीता ज्यादा से ज्यादा दोतीन दिन उस से बात नहीं करती, आंसू बहाती, नाराज रहती. उन दोनों के बीच फिर से सबकुछ नौर्मल  हो जाता था. आज  भी सुबह औफिस के लिए घर से निकलने से पहले उस की नीता के साथ लड़ाई हुई थी लेकिन उस ने नीता से ऐसा कुछ भी नहीं कहा था जो  गुस्से में आज से पहले कभी न कहा हो.

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