Jolly LLB 3: सुभाष कपूर एक सधे हुए व्यवसायिक निर्देशक हैं जिन्होंने जोली एलएलबी 3 में निर्माताओं आलोक जैन और अजीत अंधारे के मुनाफे का पूरा पूरा ध्यान रखा है. 120 करोड़ की लागत से बनी यह फिल्म ठीक है कि औसत से बेहतर और उम्मीद के मुताबिक कमाई कर गई लेकिन यह आंकड़ा उलट भी हो सकता था बशर्ते इस में लगभग सस्ते ड्रामाई मनोरंजन के टोटके न ठूंसे गए होते. यानी मुनाफे की इस शर्त को टीम ने पूरा किया कि हमें मेरा नाम जोकरनुमा आधी कमर्शियल और आधी आर्ट फिल्म नहीं बनाना है. बस मुद्दे की बात या विषय को छूते हुए आगे बढ़ लेना है उस में डूब नहीं जाना है. क्योंकि दर्शक अब फिल्म मनोरंजन के लिए देखने जाते हैं बोझिल होती रोजमर्राई जिन्दगी पर और बोझ लादने नहीं.
इस लिहाज से कोई लोंचा नहीं, फिल्म ठीक ठाक है जिसे देखने के बाद पछताना नहीं पड़ता कि खामोख्वाह में 4 - 5 घंटे और 400 - 500 रुपए जाया किए. कोर्ट रूम ड्रामा के लिहाज से इस के पार्ट 1 और 2 भी ठीकठाक थे जिन्हें दर्शकों की तारीफ मिली थी, किसी फिल्म में और अच्छा कुछ होने की गुंजाईशों को देखें तो जोली एलएलबी 3 में इकलौती सम्भावना यह दिखती है कि इसे भूमि अधिग्रहण जैसे संवेदनशील विषय पर सलीके से फ़ोकस किया जा सकता था. एक ऐसा मुद्दा जिस से आम आदमी को कोई खास लेना देना नहीं होता लेकिन दरअसल में वह किसानों के लिहाज से बेहद अहम होता है और कानूनन व वैचारिक तौर पर इस के अपने अलग माने होते हैं.
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