यह उन दिनों की बात है जब मैं पंजाब के एक छोटे से शहर के एक थाने में तैनात था. एक दिन दोपहर लगभग 3 बजे एक अधेड़ उम्र की औरत थाने में आई, उस के साथ 2 आदमी भी थे. उन्होंने बताया कि एक औरत मर गई है, उन्हें शक है कि उस की हत्या की गई है. पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें संदेह इसलिए है कि देखने से ऐसा लग रहा है जैसे उसे जहर दिया गया हो.

मैं ने देखा मर्द बोल रहे थे लेकिन औरत चुप थी. मैं ने पूछा रिपोर्ट किस की ओर से लिखी जाएगी. उन्होंने औरत की ओर इशारा कर दिया. वे दोनों मर्द उस के पड़ोसी थे. औरत का नाम शादो था और मरने वाली का नाम सरदारी बेगम. मैं ने मरने वाली से उस का संबंध पूछा तो उस ने बताया कि मरने वाली उस की सौतन थी. उस के पति का 9 महीने पहले देहांत हो चुका था. सौतनों के झगड़े होना मामूली बात है. मैं ने भी इसी तरह का केस समझ कर रिपोर्ट लिख ली और उनके घर पहुंच गया.

मैं ने लाश को देखा तो लगा कि मृतका को जहर दिया गया है. मैं ने कागजी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और केस की जांच में लग गया. मैं ने देखा कि घर में एक ओर चीनी की प्लेट में थोड़ा सा हलवा रखा हुआ था, उस में से कुछ हलवा खाया भी गया था.

मैं ने अनुमान लगाया कि मृतका को हलवे में जहर मिला कर खिलाया गया होगा. मैं ने उस हलवे को जाब्ते की काररवाई में शामिल कर के उसे मैडिकल टेस्ट के लिए भेज दिया. मैडिकल रिपोर्ट आने पर ही आगे की काररवाई की जा सकती थी.

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