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पहले दिन का प्रोग्राम खत्म कर हम दोनों अपने रूम में आ गए और डिनर रूम में ही मंगवा लिया था. थोड़ी देर तक दूसरे दिन के प्रोग्राम पर कुछ बातें हुईं और हम अपनेअपने बैड पर जो गिरे तो सुबह ही आंखें खुलीं. जल्दीजल्दी तैयार हो दोनों नीचे हौल में गए जहां यह कार्यक्रम चल रहा था. डैलीगेट्स के आने से पहले पहुंचना था हमें.

इस दिन का प्रोग्राम भी संतोषजनक और उत्साहवर्धक रहा था. हमें कुछ स्पौट और्डर भी मिले, तो कुछ ने अपने देश लौट कर और्डर देने का आश्वासन दिया. शोभना आज गहरे नीले रंग के सूट में और निखर रही थी. वह सभी डैलीगेट्स को एकएक कर कंपनी की ओर से गिफ्ट पैकेट दे कर विदा कर रही थी.

प्रोग्राम समाप्त हुआ तो दोनों अपने रूम में आ गए थे. मैं ने पूछा कि विश्वविख्यात दुबई मौल घूमने का इरादा है तो वह बोली, ‘‘मुझे अकसर ज्यादा देर तक खड़े रहने से दोनों पैरों में घुटनों के नीचे भयंकर दर्द हो जाता है. मैं तो डर रही थी कि कहीं बीच में ही प्रोग्राम छोड़ कर न आना पड़े. अमित, आज का दर्द बरदाश्त नहीं हो रहा. जल्दी में दवा भी लाना भूल गई हूं. और सिर भी दर्द से फटा जा रहा है. प्लीज, मुझे यहीं आराम करने दो, तुम घूम आओ.’’

हालांकि थका तो मैं भी था, अंदर से मेरी भी इच्छा बस आराम करने की थी. मैं ने कहा, ‘‘मैं बाहर जा रहा हूं. दरवाजा बंद कर ‘डौंट डिस्टर्ब’ बोर्ड लगा दूंगा. तब तक तुम थोड़ा आराम कर लो.’’

मैं थोड़ी ही देर में होटल लौट आया था. थोड़ी दूर पर एक दवा दुकान से पेनकिलर, स्प्रे और सिरदर्द वाला बाम खरीद लाया था. धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर गया. शोभना नींद में भी दर्द से कराह रही थी. मैं ने धीरे से उस के दोनों पैर सीधे किए. तब तक उस की नींद खुल गई थी. उस ने कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

मैं ने थोड़ा हंसते हुए कहा, ‘‘अभी तो कुछ किया ही नहीं, करने जा रहा हूं?’’

तभी उस ने सिरहाने पड़े टेबल से फोन उठा कर कहा, ‘‘मैं होटल मैनेजर को बुलाने जा रही हूं.’’

मैं ने पौकेट से दोनों दवाइयां निकाल कर उसे दिखाते हुए कहा, ‘‘पागल मत बनो. 2 रातों से तुम्हारे बगल के बैड पर सो रहा हूं. मेरे बारे में तुम्हारी यही धारणा है. लाओ अपने पैर दो. स्प्रे कर देता हूं, तुरंत आराम मिलेगा.’’

मैं ने उस के दोनों पैरों पर स्प्रे किया और एक टैबलेट भी खाने को दी.

स्प्रे से कुछ मिनटों में उसे राहत

मिली होगी, सोच कर पूछा, ‘‘कुछ आराम मिला?’’

उस के चेहरे पर कुछ शर्मिंदगी झलक रही थी. वह बोली, ‘‘सौरी अमित. मैं नींद में थी और तुम ने अचानक मेरी टांगें खींचीं तो मैं डर गई. माफ कर दो. पैरों का दर्द तो कम हो रहा है पर सिर अभी भी फटा जा रहा है.’’

मैं सिरदर्द वाला बाम ले कर उस के ललाट पर लगाने जा रहा था तो उस ने मेरे हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘अब और शर्मिंदा नहीं करो. मुझे दो, मैं खुद लगा लूंगी.’’

मैं ने लगभग आदेश देने वाले लहजे में चुपचाप लेटे रहने को कहा और बाम लगाने लगा. वह मेरी ओर विचित्र नजरों से देख रही थी और पता नहीं उसे क्या सूझा, मुझे खींच कर सीने से लगा लिया. हम कुछ पल ऐसे ही रहे थे, फिर मैं ने उस के गाल पर एक चुंबन जड़ दिया. इस पर वह मुझे दूर हटाते हुए बोली, ‘‘मैं ने इस की अनुमति नहीं दी थी.’’

मैं भी बोला ‘‘मैं ने भी तुम्हें सीने से लगने की इजाजत नहीं दी थी.’’

इस बार हम दोनों ही एकसाथ हंस पड़े थे. अगले दिन हम दुबई मौल, अटलांटिस और बुर्ज खलीफा घूमने गए. ये सभी अत्यंत सुंदर व बेमिसाल लगे थे. इसी दिन शाम की फ्लाइट से दोनों हैदराबाद लौट आए हैं. फ्लाइट में उस ने बताया कि पिछले 3 दिन उस की जिंदगी के सब से हसीं दिन रहे हैं. मेरी मां आने वाली हैं, हो सकता है मुझे कोई ब्रेकिंग न्यूज सुनाएं.

इधर 2 दिनों से शोभना नहीं दिखी पर फोन पर बातें हो रही थीं. मन बेचैन हो रहा है उस से मिलने को. शायद उस से प्यार करने लगा था. मैं ने उसे फोन कर मिलने को कहा तो वह बोली कि उस की मां आई हुई हैं. उन्होंने मुझे शाम को घर पर बुलाया है. इस के पहले हम कभी एकदूसरे के घर नहीं गए थे. शाम को शोभना के घर गया तो पहले तो मां से परिचय कराया और उन से मेरी तारीफ करने लगी.

वह चाय और स्नैक्स ले कर आई तो तीनों साथ बैठे थे. मां ने मेरा पूरा नाम और परिवार के बारे में पूछा तो मैं ने कहा कि मेरा नाम अमित रजक है और मेरे मातापिता नहीं हैं. उन्होंने अपना नाम मनोरमा पांडे बताया और कहा कि शोभना के पिता तो बचपन में ही गुजर गए थे. उन्होंने अकेले ही बेटी का पालनपोषण किया है. फिर अचानक पूछ बैठीं, ‘‘तुम्हारे पूर्वज क्या धोबी का काम करते थे?’’

उन का यह प्रश्न तो मुझे बेतुका लगा ही था, मैं ने शोभना की ओर देखा तो वह भी नाराज दिखी थी. खैर, मैं ने कहा, ‘‘आंटी, जहां तक मुझे याद है मेरे दादा तक ने तो ऐसा काम नहीं किया है. दादाजी और पिताजी दोनों ही सरकारी दफ्तर में चपरासी थे और मेरे लिए इस में शर्म की कोई बात नहीं है. और आंटी…’’

शोभना ने मेरी बात बीच में काटते हुए मां से कहा, ‘‘हम ब्राह्मण हैं तो हमारे भी दादापरदादा जजमानों के यहां सत्यानारायण पूजा बांचते होंगे न, मां?  और मैं तो ब्राह्मण हो कर भी मांसाहारी हूं?’’

मैं मां को नमस्कार कर वहां से चल पड़ा. शोभना नीचे तक छोड़ने आई थी. उस ने मुझ से मां के व्यवहार के लिए माफी मांगी. मैं अपने फ्लैट में वापस आ गया था.

दूसरे दिन शोभना ने फोन कर शाम को हुसैन सागर लेक पर मिलने को कहा. हुसैन सागर हैदराबाद की आनबानशान है. वहां शाम को अच्छी रौनक और चहलपहल रहती है. एक तरफ एक लाइन से खेलकूद, बोटिंग का इंतजाम है तो दूसरी ओर खानेपीने के स्टौल्स. और इस बड़ी लेक के बीच में गौतम बुद्घ की विशाल मूर्ति खड़ी है.

शोभना इस बार भी पहले पहुंच गई थी. हम दोनों भीड़ से थोड़ा अलग लेक के किनारे जा बैठे थे. शोभना ने कहा कि उसे मां से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी.

मैं ने जब पूछा कि मां को जातपात की बात क्यों सूझी, तो उस ने कहा, ‘‘अमित, सच कहूं तो मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. मैं ने मां को बता दिया है कि मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. पर दुख की बात यह है कि

सिर्फ जातपात के अंधविश्वास के चलते उन्हें यह स्वीकार नहीं है. मैं तो तुम्हारा पूरा नाम तुम्हारे गले में लटके आईडी पर बारबार पढ़ चुकी हूं.’’

इतना कह उस ने मेरा हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘मैं दोराहे पर खड़ी हूं, तुम्हें चुनूं या मां को. मां ने साफ कहा है कि किसी एक को चुनो. बचपन में ही पिताजी की मौत के बाद मां ने अकेले दम पर मुझे पालपोस कर बड़ा किया, पढ़ायालिखाया. अब बुढ़ापे में उन्हें अकेले भी नहीं छोड़ सकती. तुम ही कुछ सुझाव दो.’’

मैं ने कहा, ‘‘शोभना, प्यार तो मैं भी तुम से करता हूं, यह अलग बात है कि मैं पहल नहीं कर सका. तुम्हें मां का साथ देना चाहिए. हर प्यार की मंजिल शादी पर आ कर खत्म हो, यह जरूरी नहीं. जिंदगी में प्यार से भी जरूरी कई काम हैं. तुम निसंकोच मां के साथ रहो. तुम भरोसा करो मुझ पर, मुझे इस बात का कोई दुख न होगा.’’

‘‘जितना प्यार और सुकून थोड़ी देर के लिए ही सही, दुबई में मुझे तुम से मिला है उस की बराबरी आजीवन कोई न कर सकेगा.’’

इतना कह वह मेरे सीने से लग कर रोने लगी और बोली, ‘‘बस, आखिरी बार सीने से लगा रही हूं अपने पहले प्यार को.’’

मैं ने उसे समझाया और अलग करते

हुए कहा, ‘‘बस, इतना समझ लेना हमारा प्यार उसी रैड सिगनल पर रुका रहा. उसे ग्रीन सिगनल नहीं मिला.’’ और दोनों जुदा हो गए.

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