सुपर फास्ट नीलांचल ऐक्सप्रैस से मैं दिल्ली आ रहा था. लखनऊ एक सरकारी काम से आया था. वैसे तो मैं उत्तर प्रदेश सरकार का नौकर हूं लेकिन रहता दिल्ली में हूं. दिल्ली स्थित उत्तर प्रदेश राज्य अतिथिगृह में विशेष कार्याधिकारी के पद पर कार्यरत हूं.

इस यात्रा के दौरान मेरे साथ कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुईं जिन्हें अप्रत्याशित कहा जा सकता है. मसलन, लखनऊ में मुझेजिन अधिकारी से मिलना था उन की पत्नी को जानलेवा दिल का दौरा पड़ गया. बेचारी पूरे 3 दिन तक जीवन और मृत्यु के बीच हिचकोले खाती हुई किसी तरह जीवित परिवार वालों के बीच लौट सकी थीं. वे अधिकारी भद्र पुरुष थे. पत्नी की बीमारी से फारिग होते ही उन्होंने पूरे 10 घंटे लगातार परिश्रम कर के मेरी उस योजना को अंतिम रूप प्रदान कर दिया जिस के लिए मैं लखनऊ आया था.

वापसी हेतु ऐन दशहरे के दिन ही मैं ट्रेन पकड़ सका. गाड़ी अपने निर्धारित समय पर लखनऊ से छूटी, लेकिन उन्नाव से पहले सोनिक स्टेशन पर वह अंगद के पांव की तरह अड़ गई. पता चला कि कंप्यूटर द्वारा संचालित सिग्नल व्यवस्था फेल हो गई है.

प्रथम श्रेणी के कूपे में मैं नितांत अकेला था. कानपुर पहुंचने से पहले ही मैं ने अपने थर्मस को नीबूपानी से भर दिया था. लगता था कि आज के दिन मुझेकोई सहयात्री नहीं मिलेगा. एक बार अच्छी तरह पढ़ी हुई पत्रिका को फिर पढ़ते हुए दिल्ली तक की यात्रा पूरी करनी पड़ेगी. वैसे मुझेपूरी उम्मीद थी कि मेरा बेटा कार ले कर मुझेलेने स्टेशन आएगा. मैं ने लखनऊ से ही उसे फोन कर दिया था कि मैं नीलांचल ऐक्सप्रैस से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

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