एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से इतना खुश हो गया कि उस ने बंजारे को अपना एक गधा दे दिया. बंजारा बड़ा खुश था गधे के साथ. अब उसे पैदल नहीं चलना पड़ता था, न ही अपना सामान कंधे पर ढोना पड़ता. और गधा था भी बड़ा स्वामीभक्त. लेकिन एक दिन गधा अचानक बीमार पड़ गया और मर गया. बंजारे ने गधे की कब्र बनाई. वह कब्र के पास बैठ कर रो रहा था. तभी सौदागारों का एक कारवां उधर से गुजरा. सौदागरों ने सोचा, जरूर किसी पहुंचे हुए पीर की मौत हो गई है. वे भी कब्र के सामने झुके. उन्होंने बहुत से रुपए कब्र पर चढ़ाए. बंजारे को यह सब देख कर हंसी आ रही थी.

उस ने सोचा कि यह तो बड़ी कमाई का धंधा है. फिर वह उसी कब्र के पास बैठता और रोता रहता. धीरेधीरे आसपास के गांवों में खबर फैल गई और चढ़ावा जमा होतेहोते काफी संपत्ति इकट्ठी हो गई. उस ने गधे की कब्र के लिए बड़ी सी इमारत बना डाली. आसपास कई सराएं भी खोल दीं. एक दिन वह फकीर, जिस ने उसे यह गधा भेंट किया था, उस गांव के पास से गुजरा. उस ने बंजारे से पूछा, ‘‘अरे भाई, यह किस की कब्र है? और तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ उस बंजारे ने सारी कथा सुना दी. पूरी बात सुन कर फकीर हंसने लगा. बंजारे ने हंसने का कारण पूछा.

फकीर ने कहा, ‘‘जिस कब्र पर मैं बैठता हूं, वह भी एक पहुंचे हुए फकीर की कब्र है.’’ उसी से तो मेरा भी खर्चापानी चलता है. क्या तुम्हें मालूम है कि वह किस फकीर की कब्र है?’’ बंजारे ने कहा, ‘‘मुझे कैसे मालूम, आप ही बताएं.’’ फकीर ने बताया कि वह इस गधे की मां की कब्र है.

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