एक दिन करोड़ीमल को खबर लगी कि धनपतलाल अस्पताल में भरती है. उस के शरीर के हर हिस्से में चोट लगी थी. कई जगह फ्रैक्चर था. खबर मिलते ही करोड़ीमल भागेभागे अस्पताल पहुंचे. देखा कि धनपतलाल के तो पूरे बदन पर पट्टियां ही पट्टियां बंधी हैं. औक्सीजन लगा है. ग्लुकोज की बोतल लटकी है. पास में बैठी उन की बीवी लाजवंती रो रही है.

करोड़ीमल ने पूछा, ‘‘भौजी, कोई ऐक्सिडैंट हो गया क्या?’’

‘‘मुझ से क्या पूछते हो?’’

लाजवंती ने जारजार रोते हुए कहा, ‘‘अपने भाई से ही पूछो न.’’

‘‘क्या हो गया धनपतलाल?’’ करोड़ीमल ने दुखभरे स्वर में सवाल किया, ‘‘तुम यह क्या कर बैठे? ऐसा कैसे ऐक्सिडैंट हो गया कि सारे शरीर पर प्लास्टर ही प्लास्टर?’’

बेचारे धनपतलाल ने बड़ी मुश्किल से मुंह खोल कर जवाब दिया, ‘‘क्या बताऊं मेरे यार, मैं ने तो बस इतना ही कहा था कि सब्जी में थोड़ा नमक कम है.’’ इतना सुनना भर था कि लाजवंती आगबबूला हो गई और पूरी ताकत लगा कर चीखी, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती झूठ बोलते? तुम ने यह नहीं कहा था कि नमक जरा कम है. तुम ने कहा था कि सब्जी में नमक है ही नहीं.’’ इस पर करोड़ीमल समझाने लगे, ‘‘भाभी, इस में इतना गुस्सा होने की तो कोई बात नहीं थी. आप सब्जी में थोड़ा नमक डाल सकती थीं.’’

लाजवंती बोली, ‘‘अगर घर में नमक होता तो मैं पहले ही न डाल देती? एक हफ्ते से घर में नमक ही नहीं. कहो अपने दोस्त से, घर में सामान ला कर क्यों नहीं रखते?’’

‘‘अब तुम सरासर झूठ बोल रही हो,’’ धनपतलाल बिस्तर पर पड़ेपड़े ही बोल उठे, ‘‘मैं ने पिछले सोमवार को ही 5 किलो नमक ला कर रख दिया था.’’

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