विनय बहुत होनहार छात्र था. उस के घर में कुल 3 सदस्य थे. उस के मातापिता और वह स्वयं. उस के पिता मुकुटजी बड़े ही सभ्य पुरुष थे. घर में सुखसुविधा के विशेष साधन नहीं थे फिर भी परिवार के सभी लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए बड़ी प्रसन्नतापूर्वक जीवनयापन कर रहे थे.

विनय अपने पिता की भांति धीरगंभीर और हंसमुख स्वभाव का तेजस्वी किशोर था. उस में कोई भी अवगुण नहीं था. इसी कारण घर से स्कूल तक सभी उस पर गर्व करते थे. वह मातापिता तथा गुरु का सम्मान करता था. उन की प्रत्येक आज्ञा का पालन बड़ी निष्ठा के साथ करता था. इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे.

विनय के पिता ने जहां घर लिया था, वहां बहुत सी मिलें, फैक्टरियां आदि आसपास ही थीं. वे स्वयं भी एक मिल में कार्यरत थे. दिन भर काम करते तथा शाम को थकेहारे घर आते. विनय उस समय पढ़ाई करता रहता. पिताजी को देख कर वह सोचता, ‘पिताजी मेरी पढ़ाई के लिए कितना परिश्रम करते हैं और इस कारण अपनी सेहत की भी चिंता नहीं करते. आखिर मैं तो छात्रवृत्ति पा ही रहा हूं. क्या आवश्यकता है पापा को इतना परेशान होने की?’ विनय सोचता कि वह थोड़ा और पढ़ ले तो आत्मनिर्भर बन कर पिता की सेवा करे.

एक दिन वह स्कूल से घर पहुंचा तो देखा कि पिताजी लेटे हुए हैं और मां उन के पास उदास बैठी हुई हैं. उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां, पिताजी ऐसे क्यों लेटे हुए हैं?’’

पिताजी ने कहा, ‘‘ठीक हूं बेटा, तू परेशान मत हो और अपनी पढ़ाई में ध्यान लगा.’’

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