लेकिन वह उस समय हैरानपरेशान हो गया, जब तनु से पूछ कर उस ने घर में एक पार्टी रखी, जिस में उस की महिला मित्र भी शामिल हुई थीं. तनु ने उन सब की अच्छे से आवभगत की. राजेश ने , जो वह सोचने पर विवश हो गया? क्या वाकई तनु बदल गई थी...?

राजेश प्रत्यक्षत: तो लैपटौप या ईमेल पर पढ़ रहा था, लेकिन उस के कान अपनी पत्नी तन्वी और बच्चों स्नेहा और यश की बातों की तरफ लगे थे, बातों के साथ तन्वी सब के टिफिन पैक करती जा रही थी. स्नेहा ने कहा, ‘‘मां, आज औफिस से आने में देर हो सकती है.’’

‘‘ओह, फिर? क्यों?’’

‘‘आज बहुत काम है. 8 बजे भी निकली, तो ठाणे  पहुंचतेपहुंचते 11 तो बज ही जाएंगे, मेरा डिनर मत बनाना. औफिस की कैंटीन से ही कुछ खा कर निकलूंगी.’’

‘‘क्या मुसीबत है, औफिस आनाजाना कितना मुश्किल होता जा रहा फिर मुंबई में.

"इस से पहले तो वर्क फ्रौम होम था तो कम से कम आसपास तो रहती थी.

स्नेहा, कोई कुलीग नहीं है जिस के साथ तुम आजा पाओ."

‘‘नहीं मां, मैं ही यहां सब से दूर रहती हूं ठाणे में.’’

‘‘कितना अच्छा होता तुम्हें कोई कंपनी मिल जाती तो...’’

‘‘कल तो मैं ने नरीमन पाइंट पहुंच कर श्रेयस को फोन किया कि मेरा बैग लैपटौप और बाकी सामान से भरा हुआ है और मेरे पैर में भी दर्द है. प्लीज, मुझे लेने आ जाओ, तो बेचारा अपनी गाड़ी ले कर औफिस से मुझे स्टेशन लेने आया, नहीं तो टैक्सी स्टैंड तक जातेजाते मेरे कंधे का बुरा हाल हो जाता.’’‘‘यह तो अच्छा हुआ, तुम्हें कुछ आराम हो गया होगा.’’

यश ने स्नेहा को छेड़ने की कोशिश की, ‘‘ओहो दीदी, तो श्रेयस लेने आया?’’ तन्वी ने डपटा, ‘‘चुप रहो, बकवास मत करो, लेने आ गया तो क्या हुआ, दोस्त है उस का.’’

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