सुभद्रा की कुशल लेने वालों का तांता लग गया. कसबे का कोई शख्स न था जो न आया हो. उसे लगा कि सबकुछ हो कर भी वह स्वयं को असहाय क्यों मानती रही. वह अकेली नहीं थी, उस की सोच ही अकेली चल रही थी.