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‘‘ठीक है दीदी, आप चलिए सब इंतजाम आप के मुताबिक हो जाएगा,’’ कह कर दीप्ति एक आज्ञाकारी भाभी की तरह चुपचाप दीदी के पीछेपीछे चल दी मानो घर उस का नहीं, प्रभा दीदी का हो.

प्रभा दीदी को नहानेधोने, तैयार होने और फिर जलपान करने में तकरीबन 2 घंटे लग गए. इन सब कामों के बीच में वह एक नजर मकान की दीवारों पर भी डाल लेती थी. कभी खिड़कियों पर लगे परदों को एक अजीब सी निगाहों से देखती थी तो कभी फर्श को देखते समय हलकी सी भवें चढ़ा लेती थी.

इस से पहले कि समीर और दीप्ति उन से मकान देखने के लिए कहते वे खुद ही उठ कर चल दीं और घूमघूम कर उन के नवनिर्मित आशियाने का अवलोकन करने लगीं.

‘‘समीर, तू ने फर्श पर यह टाइल्स लगा कर अच्छा काम नहीं किया. यहां इटालियन मार्बल लगवाना चाहिए था.’’

‘‘दीदी, आजकल सब टाइल्स ही लगवाते हैं. आर्किटैक्ट ने टाइल्स लगवाने को ही कहा था.’’

‘‘अरे, ये आर्किटैक्ट भी मुंह देख कर ही टीका निकालते हैं. तू ने ही उस के आगे अपने बजट का रोना रोया होगा. बेचारे ने सस्ते में निबटा दिया और क्या करता? मकान की मट्ठ ही मार दी टाइल्स लगवा कर और यह देख, बाथरूम में नल भी पुराने फैशन के लगवाए हैं. आजकल ऐसे नल कौन लगवाता है और यह बेसिन? काउंटर क्यों नहीं बनवाए? शौवर भी छोटा है,’’ कहतेकहते दीदी रसोई की ओर बढ़ गईं.

‘‘बाप रे, नीले रंग की टाइल्स... भला किचन में भी कोई नीले रंग की टाइल्स लगवाता है? सफेद या क्रीम ही ठीक रहती हैं और मु?ो तो यह लोकल ब्रैंड लग रहा है. देखना, कुछ ही दिनों में इन की चमक खत्म हो जाएगी,’’ बोलतेबोलते दीदी की नजर अचानक पंखों पर पड़ी पर उन्हें देख कर वे कुछ न बोलीं.

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