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घर पहुंच कर तन्हाई से सामना करना कठिन हो रहा था. हर तरफ नीता और रिया दिखाई दे रही थीं, उन की यादों ने मुझे झकझोर कर रख दिया. जी में आता घर छोड़ कर कहीं दूर चला जाऊं. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा धम्म से सोफे पर बैठ गया. दुर्घटना से संबंधित सारे दृश्य आंखों के सामने आने लगे, मानो कोई वीभत्स चलचित्र देख रहा हूं. हादसे का दृश्य, क्षतविक्षत शरीर, मेरी नीता और रिया, जो मेरे लिए सुंदरता की प्रतिमूर्ति थीं. क्षतविक्षत लाशें, सार्वजनिक दाहसंस्कार, इतनी बड़ी संख्या में लोगों का क्रंदन. इतने लोगों के मध्य में भी अपना दुख सहन किए बैठा था किंतु घर में अकेले असहनीय प्रतीत हो रहा है. नहीं सहन होगा मुझ से, मैं नीता और रिया के बिना नहीं जी सकता, जो मेरी हर सांस में, हर आस में बसी हैं, उन के बिना भला कैसे जी सकता हूं. यह असंभव है, एकदम असंभव.

अपने ही घर में मैं बुत बना बैठा था. सामने रखे फोटो पर नजर ठहर गई. और मैं अतीत में खो गया. पिछले माह ही मेरी और नीता की 25वीं शादी की सालगिरह पड़ी थी. रिया के अनुरोध पर हम ने यह तसवीर खिंचवाई थी. रिया का कहना था कि मम्मीपापा, आप लोग अपनी शादी की 25वीं सालगिरह पर पेपर फोटो खिंचवाइए, जैसी आप दोनों ने अपनी शादी के बाद खिंचवाई थी. उस ने हंसते हुए कहा था, ‘मेरे मम्मीपापा इतने यंग और स्मार्ट दिखते हैं कि कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि यह तसवीर 25वीं सालगिरह पर खिंचवाई गई है.’ नीता ने रिया से सस्नेह कहा, ‘चलो, तुम्हारी बात मान लेते हैं, किंतु इस फोटो में हमारी प्यारी बिटिया भी साथ आएगी, भला 25वीं सालगिरह की फोटो बिटिया के बिना हो ही नहीं सकती है.’

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