इस बार मायके गई तो छोटी बहन ने समाज की खासखास खबरों के जखीरे में से यह खबर सुनाई, ‘‘बाजी, आप के सईद मास्साब की मृत्यु हो गई.’’
‘‘कब? कैसे?’’
पिछले महीने की 10 तारीख को. बड़ी तकलीफ थी उन्हें आखिरी दिनों में. पीठ में बैडसोर हो गए थे. न लेट पाते थे न सो पाते थे. रातरातभर रोतेरोते अपनी मौत का इंतजार करते पूरे डेढ़ साल बिताए थे उन्होंने.
इस दर्दनाक मौत की खबर ने मुझे रुला दिया. मैं ने आंसू पोंछते हुए पूछा, ‘‘लेकिन उन की तो 4-4 बीवियां, 6 बच्चे और एक छोटा भाई भी तो था न?’’
‘‘बाजी, जब बुरे दिन आते हैं न, तो साया भी साथ छोड़ देता है. उन की पहली बीवी तो 3 साल पहले ही
दुनिया से चली गई थी. दूसरी, तीसरी, चौथी बीवियों ने झांक कर भी नहीं देखा. आखिरी वक्त में भाई ही भाई के काम आया.’’
यह सुन कर मुझे दिली तकलीफ पहुंची. सईद मास्साब 10वीं क्लास में अंजुमन स्कूल में मेरे इंग्लिश के टीचर थे. लंबेचौड़े सांवले रंग के मास्साब के फोटोजैनिक चेहरे पर मोटे फ्रेम के चश्मे के नीचे बड़ीबड़ी आंखों में चमक हमेशा सजी रहती. अपने हेयरस्टाइल आर ड्रैसिंग सैंस के लिए स्टूडैंट्स के बीच बेहद लोकप्रिय थे वे. लड़कियां अकसर आपस में शर्त लगातीं, ‘देखना, सईद मास्साब आज कुरतापजामा के साथ कोल्हापुरी चप्पल पहन कर आएंगे.’ सुन कर दूसरी लड़की झट बात काटती हुई कहती, ‘नहीं, आज मास्साब जरूर पैंटशर्ट के साथ बूट पहन कर आएंगे.’ कोईर् कहती, ‘नहीं, मास्साब आज सलवारकुरते के साथ काली अचकन और राजस्थानी जूतियां पहन कर आएंगे चर्र…चूं करने वाली.’
जो लड़की शर्र्त हार जाती वह इंटरवल में पूरे ग्रुप को गोलगप्पे खिलाती. मास्साब इतने खुशमिजाज थे कि दर्दीली पोयम पढ़ाते वक्त भी उन के होंठों पर मुसकान की लकीर दिखाई पड़ती. लेकिन जब हम डिक्शनरी में वर्डमीनिंग देखते और गाइड में उस का अनुवाद पढ़ते तो मास्साब की मुसकान के पीछे छिपे गूढ़ अर्थ को समझने में महीनों सिर खपाते रहते.
‘मास्साब, आज मैं घर से बटुआ लाना भूल गई. घर वापस जाने के लिए रिकशे के पैसे नहीं…’ कोई लड़की कहती.
‘कोई बात नहीं, ये लीजिए 5 रुपए, ठीक से जाइएगा, समझीं,’ कहते हुए अपने पर्स की जिप खोलने लगते.
‘मास्साब, मेरे अब्बू के गैरेजमालिक की मां मर गई. मेरे अब्बू को तनख्वाह नहीं मिल सकी, इसलिए फीस नहीं ला सका.’ कोई लड़का हकलाते हुए यह कहता तो मास्साब कौपियों से सिर उठाए बिना, उस की सूरत देखे बगैर ही कहते, ‘कोई बात नहीं, मैं भर दूंगा, आप की फीस. नाम क्या है?’
‘फैयाज मंसूरी.’
‘ठीक है, जब अब्बू को तनख्वाह मिले तब ले आना,’ कह कर मास्साब चपरासी को बुला कर उस लड़के की फीस औफिस में उसी वक्त जा कर जमा करने के लिए नोट थमा देते. लेकिन पूरे साल लड़के के अब्बू को न तो तनख्वाह मिलती, न मास्साब को कभी अपने दिए गए पैसे याद रहते.
इंग्लिश के अच्छे टीचर के अलावा सईद मास्साब स्कूल की कल्चरल, स्पोर्ट्स और सोशल ऐक्टिविटीज में हमेशा आगे रहते. नौजवान खून में ऊंचे ओहदे की बुलंदियां छू लेने के लिए मेहनतकशी को हथियार बनाने की पुख्ता सोच उन के हर काम के लिए तत्पर रहने वाले किरदार से साफ झलकती. साइंस एग्जीबिशन में अपने मौडल ले कर दूसरे स्कूल जाना है बच्चों को, तो सईद मास्साब बस के इंतजाम से ले कर मौडल्स पैक करने, उन के डिटेल्स को टाइप कराने तक के पूरे काम अपने सिर ले लेते.
बच्चों को किसी टुर्नामैंट में जाना है तो सईद मास्साब बच्चों के स्पोर्ट्स ड्रैस, किट्स, फर्स्टएड बौक्स खरीदते हुए घर आने में लेट हो जाते तो मुंह फुला कर बैठी बीवी की तानाकशी भी झेलते. ‘पिं्रसिपल के बराबर तनख्वाह मिलती तो भी सब्र आ जाता. चौबीसों घंटे, घरबार, बच्चे सौदासुलूफ को भूले… आप बस, अंजुमन स्कूल के ही हो कर रह गए हैं. घर, बच्चों का तो खयाल ही नहीं.’
जुलाई के महीने में एक नई टीचर ने जौइन किया था. वह कुंआरी थी. कुछ महीनों के बाद पता चला उस की शादी तय हो गई. स्कूल में वह हाथ भरभर कर हरी रेशमी चूडि़यां और कुहनी तक मेहंदी लगा कर आईर् थी.
सालभर भी नहीं गुजरा, दुबई गए उस के शौहर ने दुबई से स्काईप पर ही टीचर को तलाक कह दिया तीन बार. रोतीबिलखती टीचर को सईद मास्साब जैसे हमदर्द का ही कंधा मिला पूरे स्कूल में दर्द का पहाड़ पिघलाने के लिए.
स्टाफरूम में अब सईद मास्साब को देख कर कानाफूसी शुरू होने लगी. ‘सुना है सईद सर जुलेखा मैडम से निकाह करने वाले हैं.’
‘तभी तो उन्हें रोज स्कूल से घर लाते, ले जाते हैं. कमाने वाली औरत पर ही सईद मास्साब पूरी हमदर्दी लुटाते हैं.’
‘क्या कह रहीं है आप?’ नसरीन मैडम चौंकी. ‘हां, सच कह रही हूं,’ आयशा मैडम बोली, ‘देखिए उन की पहली बीवी सरकारी स्कूल में टीचर हैं. दोनों की कमाई है. घर में हर तरह का ऐशोआराम है. अब मजहब के नाम पर बेसहारा को सहारा देने के बहाने सईद मास्साब को फिर एक कमाऊ औरत मिल गई है. और दूसरी बीवी पर खर्च तो करना नहीं पड़ेगा, बल्कि जरूरत पर जुलेखा मैडम उन के अकाउंट में पैसे डाल देगी.’
मुझे नजमा मैडम ने स्टाफरूम में मेरी क्लास की नोटबुक लाने भेजा था, तभी टीचर्स की ये बातें मेरे कानों में पड़़ीं तो सहज विश्वास नहीं हुआ. आता भी कैसे? हमारे बालमन पर सईद मास्साब की छवि आदर्श टीचर की छपी हुई थी.