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अवंतिका की बातें सुन कर मेरा मन खराब हो गया. देखने में तो उस के पति सौम्य, सुशिक्षित लगते हैं, पर अंदर से कोई कैसा होगा, यह चेहरे से कहां पता चल सकता है? एक पढ़ालिखा उच्चपदासीन पुरुष भी अपने घर में कितना दुर्व्यवहार करता है, यह सोचसोच कर अवंतिका के पति से मुझे नफरत होने लगी. अब अकसर अवंतिका अपने घर की बातें बेहिचक मुझे बताने लगी. उस की बातें सुन कर मुझे उस से सहानुभूति होने लगी कि इतनी अच्छी औरत की जिंदगी एक बदमिजाज पुरुष की वजह से कितनी दुखद हो गई… पहले जब कभी योगिता को बसस्टौप पर छोड़ने अवंतिका की जगह योगिता के पापा आते थे, तो मैं उन से हर विषय पर बात करती थी, किंतु उन की सचाई से अवगत होने के बाद मैं कोशिश करती कि उन से मेरा सामना ही न हो और जब कभी सामना हो ही जाता तो मैं उन्हें अनदेखा करने की कोशिश करती. मेरी धारणा थी कि जो इनसान अपनी पत्नी को सम्मान नहीं दे सकता उस की नजरों में दूसरी औरतों की भला क्या अहमियत होगी.

एक दिन अवंतिका काफी उखड़े मूड में मेरे पास आई और रोते हुए मुझ से कहा कि मैं 2 हजार योगिता के स्कूल टूअर के लिए अपने पास से जमा कर दूं. पति के वापस आने के बाद वापस दे देगी. चूंकि मैं योगिता की कक्षाध्यापिका थी, इसलिए मुझे पता था कि स्कूल टूअर के लिए बच्चों को 2 हजार देने हैं. अत: मैं ने अवंतिका से पैसे देने का वादा कर लिया. पर उस का रोना देख कर मैं पूछे बगैर न रह सकी कि उसे पैसे मुझ से लेने की जरूरत क्यों पड़ गई?

मेरे पूछते ही जैसे अवंतिका के सब्र का बांध टूट पड़ा. बोली, ‘‘आप को क्या बताऊं मैं अपने घर की कहानी… कैसे जिंदगी गुजार रही हूं मैं अपने पति के साथ… बिलकुल भिखारी बना कर रखा है मुझे. कितनी बार कहा अपने पति से कि मेरा एटीएम बनवा दो ताकि जब कभी तुम बाहर रहो तो मैं अपनी जरूरत पर पैसे निकाल सकूं. पर जनाब को लगता है कि मेरा एटीएम कार्ड बन गया तो मैं गुलछर्रे उड़ाने लगूंगी, फुजूलखर्च करने लगूंगी. एटीएम बनवा कर देना तो दूर हाथ में इतने पैसे भी नहीं देते हैं कि मैं अपने मन से कोई काम कर सकूं. जाते समय 5 हजार पकड़ा गए. कल 3 हजार का एक सूट पसंद आ गया तो ले लिया.1 हजार ब्यूटीपार्लर में खत्म हो गए. रात में 5 सौ का पिज्जा मंगा लिया. अब केवल 5 सौ बचे हैं. अब देख लीजिए स्कूल से अचानक 3 हजार मांग लिए गए टूअर के लिए तो मुझे आप से मांगने आना पड़ गया… क्या करूं 2 ही रास्ते बचे थे मेरे पास या तो बेटी की ख्वाहिश का गला घोट कर उसे टूअर पर न भेजूं या फिर किसी के सामने हाथ फैलाऊं. क्या करती बेटी को रोता नहीं देख सकती, तो आप के ही पास आ गई.’’

अवंतिका की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गई. अगर 2 दिन के लिए पति क्व5 हजार दे कर जाता है, तो वे कोई कम तो नहीं हैं पर उन्हीं 2 दिनों में पति के घर पर न होते हुए उन पैसों को आकस्मिक खर्च के लिए संभाल कर रखने के बजाय साजशृंगार पर खर्च कर देना तो किसी समझदार पत्नी के गुण नहीं हैं? शायद उस की इसी आदत की वजह से ही उस के पति एटीएम या ज्यादा पैसे एकसाथ उस के हाथ में नहीं देते होंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि पैसे हाथ में रहने पर अवंतिका इन्हीं चीजों पर खर्च करती रहेगी. पर फिर भी मैं ने यह कहते हुए उसे पैसे दे दिए कि मैं कोई गैर थोड़े ही हूं, जब कभी पैसों की ऐसी कोई आवश्यकता पड़े तो कहने में संकोच न करना.

कुछ ही दिनों बाद विद्यालय में 3 दिनों की छुट्टी एकसाथ पड़ने पर मेरे पास कुछ खाली समय था, तो मैं ने सोचा कि मैं अवंतिका की इस शिकायत को दूर कर दूं कि मैं एक बार भी उस के घर नहीं आई. मैं ने उसे फोन कर के शाम को अपने आने की सूचना दे दी और निश्चित समय पर उस के घर पहुंच गई. पर डोरबैल बजाने से पहले ही मेरे कदम ठिठक गए. अंदर से अवंतिका और उस के पति के झगड़े की आवाजें आ रही थीं. उस के पति काफी गुस्से में थे, ‘‘कितनी बार समझाया है तुम्हें कि मेरा सूटकेस ध्यान से पैक किया करो, पर तुम्हारा ध्यान पता नहीं कहां रहता है. हर बार कोई न कोई सामान छोड़ ही देती हो तुम… इस बार बनियान और शेविंग क्रीम दोनों ही नहीं रखे थे तुम ने. तुम्हें पता है कि गैस्टहाउस शहर से कितनी दूर है? दूरदूर तक दुकानों का नामोनिशान तक नहीं है. तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती हो कि मुझे कितनी परेशानी और शर्म का सामना करना पड़ा वहां पर… इस बार तो मेरे सहयोगी ने हंसीहंसी में कह भी दिया कि भाभीजी का ध्यान कहां रहता है सामान पैक करते समय?’’

‘‘देखो, तुम 4 दिन बाद घर आए हो… आते ही चीखचिल्ला कर दिमाग न खराब करो. तुम्हें लगता है कि मैं लापरवाह और बेसलीकेदार हूं तो तुम खुद क्यों नहीं पैक कर लेते हो अपना सूटकेस या फिर अपने उस सहयोगी से ही कह दिया करो आ कर पैक कर जाया करे? मुझे क्यों आदेश देते हो?’’ यह अवंतिका की आवाज थी.

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