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दरअसल, उसे तो कोई बीमारी हुई ही नहीं थी. बस, भावुक होने की वजह से सदमे में रहने लगी थी कि अब क्या होगा. 2 बेरोजगार भाइयों और 2 अनब्याही बहनों तथा एक परित्यक्त स्त्री (बहन) के परिवार का बेड़ा पार कैसे होगा? बड़े भाई ने अपनी जिम्मेदारियों से बहुत पहले ही किनारा कर लिया था. तेजेंद्र भी अपनी पत्नी के दबाव में उन के लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ था. यहां तक कि उन से मिलने की युक्ति भी नहीं कर पाता था. जुगुनी उसे बातबात में लांछित करती रहती थी.

अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले मीठी ने खुद फोन कर के तेजेंद्र से निवेदन किया, ‘‘भैया, आप तुरंत मेरे पास आ जाइए. मेरी तबीयत बहुत खराब चल रही है. आप आ जाएंगे तो मुझे ढाढ़स मिलेगा. मेरा मनोबल बढ़ेगा और मैं ठीक हो जाऊंगी.’’

तेजेंद्र ने उसे दिलासा दिया, ‘‘मैं यहां तुम्हारी भाभी से इजाजत ले कर शीघ्र आने का बंदोबस्त कर रहा हूं.’’ पर उसे तो बेहद डर लग रहा था कि अगर उस ने बीमार मीठी से मिलने जाने के लिए जुगुनी से कुछ कहा तो वह झगड़ाफसाद करने पर उतारू हो जाएगी और उसे किसी कीमत पर वहां नहीं जाने देगी. सारे गड़े मुर्दे उखाड़ने और दहेज के स्कूटर को वापस लेने के मुद्दे पर झगड़ने लगेगी.

लेकिन, अफसोस कि इस के पहले वह जुगुनी से इस बारे में बात करता, अगले ही दिन मीठी की तबीयत बिगड़ गई और उस के दिल की धड़कन रुक गई. तेजेंद्र को फोन पर खबर मिली कि मीठी नहीं रही.

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