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लेखिका-अल्का पांडे

मम्मा ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘बेटी, वह तुम्हारी गुड़िया बहुत पुरानी और गंदी हो गई थी. तुम इसी का नाम चिंकी रख लो. देखो, इस की तो नीली आंखें हैं, इस की फ्रौक भी कितनी सुंदर है पर निती ने उसे हाथ भी नहीं लगाया. वह चिंकी की ही रट लगाए रही. उस दिन निती रोतेरोते ही सो गई.

अजेय ने निशा से कहा, ‘तुम को निती की गुड़िया फेंकने से पहले उस से पूछ लेना चाहिए था.’ निशा ने कहा, ‘वह इतनी गंदी और पुरानी हो गई थी, इसीलिए फेंक दी. मैं ने सोचा था कि निती नई व इतनी सुंदर गुड़िया देख कर खुश हो जाएगी. मुझे क्या पता था कि वह इतनी नाराज हो जाएगी. वैसे भी आजकल कुछ ज्यादा ही जिद्दी होती जा रही है.’

निशा और अजेय के लिए चिंकी भले ही एक निर्जीव गुड़िया थी पर निती की के लिए उस की सब से आत्मीय साथी खो गई थी. वह उसे भूल नहीं पा रही थी. धीरेधीरे उस ने चिंकी के वापस आने की आस छोड़ दी. जैसे-जैसे वह बड़ी हो रही थी, घर पर अपने कमरे में ही रहने लगी थी. एक दिन निती एकांत में बैठी कुछ बड़बड़ा रही थी. निशा ने देखा तो उस से पूछा, ‘यह अकेले में क्या बड़बड़ा रही थी निती?’

निती मम्मा को देख कर चुप हो गई. निशा ने अजेय से कहा, ‘निती दिनप्रतिदिन अंतर्मुखी होती जा रही है. आज मैं ने देखा अपने कमरे में बैठी पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थी.’

अजेय ने कहा, ‘तुम उस को थोड़ा समय दिया करो. मुझे तो लगता है कि उसे अकेलापन लगता है.’ ‘मतलब, तुम्हारे हिसाब से मैं उस का ध्यान नहीं रखती.’अजेय ने कहा, ‘मेरा मतलब यह नहीं है. पर वह बड़ी हो रही है, हम को ध्यान रखना चाहिए.’

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