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मां से पूछने का मतलब था उन्हें व्यथित के साथ ही लज्जित भी करना और पापा से पूछना एक तरह से मां की शिकायत करना. तो फिर करे क्या? किस से पूछे? मां की बचपन की सहेली चित्रा आंटी को सब पता होगा. उन से पुन्नी की खूब पटती थी, आसानी से तो नहीं लेकिन मनुहार करने पर जरूर बता देंगी. चित्रा अपने पति सेवानिवृत्त एअरमार्शल ओम प्रकाश के साथ शहर से दूर अपने फार्महाउस में रहती थीं. उस ने चित्रा आंटी को फोन किया कि वह उन के पास आना चाहती है.

‘‘आज ही आजा. तेरे अंकल कुछ सामान लाने शहर गए हुए हैं, उन्हें फोन कर देती हूं कि आते हुए तुझे ले आएं,’’ चित्रा ने चहक कर कहा, ‘‘तेरी मां को भी कह देती हूं कि मैं तुझे अगवा करवा रही हूं.’’

पुन्नी ने तुरंत पापा को फोन किया.

‘‘पापा, साक्षात्कार की तैयारी से पहले मैं पूरी तरह रिलैक्स करना चाहती हूं. नो मूवीज, नो टीवी, न्यूजपेपर या फोन कौल्ज. ये सब घर पर रहते हुए तो हो नहीं सकता, सो मैं चित्रा आंटी के फार्महाउस पर जा रही हूं. वहां योगा करूंगी, ध्यान लगाने की कोशिश भी…’’

‘‘क्याक्या करोगी यह वहां जा कर सोचना,’’ अभय ने बात काटी, ‘‘नीलाभ अपने पापा की गाड़ी लेने आया हुआ है, उस से कहता हूं कि मेरी गाड़ी ले जाए और तुम्हें ओमी के फार्महाउस पर छोड़ दे.’’

‘‘ओमी अंकल मुझे लेने आ रहे हैं, पापा, वहां से लाने के लिए आप आ जाना.’’

चित्रा से बात करने के लिए उसे कोई भूमिका नहीं बांधनी पड़ी क्योंकि अगले रोज सुबह के नाश्ते के बाद ओमी अंकल जब फार्म पर चले गए तो चित्रा ने पूछा, ‘‘तेरी मां कहती थी कि तेरे पेपर बड़े अच्छे हुए हैं और तू भी बड़े आत्मविश्वास से ओमी को बता रही थी कि यहां तरोताजा होने के बाद तू धमाकेदार साक्षात्कार की तैयारी करेगी लेकिन तेरी शक्ल से तो ऐसा नहीं लग रहा. बहुत परेशान लग रही है, जैसे किसी कशमकश में फंसी हुई हो. लगता है तू यहां रिलैक्स करने नहीं, किसी परेशानी का हल ढूंढ़ने आई है.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, आंटी और वह परेशानी सिर्फ आप सुलझा सकती हैं क्योंकि ननिहाल वाले तो अमेरिका में हैं, सो उन से तो पूछने का सवाल ही नहीं उठता. एक आप ही हैं जो मम्मी को बचपन से जानती हैं और मेरी परेशानी उन के अतीत से जुड़ी हुई है,’’ पुन्नी ने चित्रा को सब बता दिया.

चित्रा हताशा से सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘कितना समझाया था मालू को कि अतीत से जुड़ी कोई चीज अपने पास मत रखना और न ही अपने जेहन में लेकिन उस ने तो जैसे मेरी बात न सुनने की कसम खा रखी है. तू ने यह बात अपने पापा को तो नहीं बताई न?’’ पुन्नी को इनकार में सिर हिलाते देख कर चित्रा ने राहत की सांस ली.

‘‘बहुत अच्छा किया, नहीं तो बुरी तरह टूट जाता बेचारा. अच्छा सिला दे रही है मालिनी अभय के त्याग और प्यार का, एक नकारे और ठुकराए गए रिश्ते की सड़ीगली लाश को सहेज कर,’’ चित्रा के स्वर में तिरस्कार था या सहानुभूति, पुन्नी समझ नहीं सकी.

‘‘प्लीज आंटी, अब पहेलियों में बात न कर के पूरी कहानी बताओ,’’ पुन्नी ने चिरौरी करी.

‘‘कह नहीं सकती कि सुनने के बाद तुझे धक्का लगेगा या इस दुविधा की स्थिति से उबरने का सुकून मिलेगा लेकिन जब इतना समझ चुकी है कि मालिनी का अतीत है तो उस के बारे में सब जानने का तुझे पूरा हक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘मैं, मालिनी, पुनीत, ओमी और अभय स्कूल से ही सहपाठी और दोस्त थे. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंचते ही हम सब ने भविष्य में क्या करना है, सोच लिया था. ओमी ने एअरफोर्स चुनी थी, मैं ने और मालिनी ने अध्यापन, अभय और पुनीत आईएएस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे. स्कूल की दोस्ती रोमांस में बदल गई थी. मेरा और ओमी का तो खैर ठीक था क्योंकि हमारे परिवारों में मित्रता थी, किसी को हमारी शादी पर एतराज नहीं था लेकिन पुनीत का परिवार बहुत रूढि़वादी था और उस की मां बेहद बदमिजाज व तेजतर्रार थीं, उन की मरजी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था.

‘‘पुनीत दब्बू किस्म का ‘माताजी का लाड़ला’ था. मगर मालिनी तो हमेशा से दबंग, अपनी मरजी की मालिक थी. मैं ने उसे समझाया कि उस के और पुनीत के प्यार का न तो कोई मेल है और न ही कोई भविष्य. पुनीत की रूढि़वादी मां उसे कदापि बहू बनाने को तैयार नहीं होंगी और वह स्वयं भी पुनीत के परिवार से तालमेल नहीं बैठा सकेगी.

‘‘‘अगर पुनीत अपनी मां का लाड़ला है तो मैं भी अपने पापा की लाड़ली हूं. वे मुझे इतना दहेज देंगे कि हिटलर माताजी मुझे झोली पसार कर ले जाएंगी और रहा सवाल परिवार से तालमेल बैठाने का, तो शादी तय होते ही बड़े भैया हम दोनों को आगे पढ़ाई के लिए अमेरिका बुला लेंगे,’ मालिनी ने दर्प से कहा था.

‘‘मेरे इस तर्क को कि आईएएस की तैयारी करने वाला पुनीत अमेरिका क्यों जाएगा, मालिनी ने यह कह कर काट दिया कि पुनीत की तो आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास करने लायक योग्यता ही नहीं है, इसलिए अमेरिका जाने का मौका वह नहीं छोड़ेगा.

‘‘और हुआ भी वही. पुनीत दोबारा प्रवेश परीक्षा देना चाहता था लेकिन मालिनी के समझाने पर कि दूसरी बार भी सफल हो और फिर मुख्य और मौखिक परीक्षा में सफलता की क्या गारंटी है, सो बेहतर है कि अमेरिका चल कर अपने प्रिय विषय अर्थशास्त्र में महारत हासिल करे. पुनीत मालिनी की बात मान गया. अपेक्षा से अधिक दहेज और अमेरिका में बेटे की पढ़ाई के लालच में उस की मां ने भी बगैर हीलहुज्जत के शादी के लिए सहमति दे दी.

‘‘मालिनी के भाई ने भी पुनीत और मालिनी को बुलाने की कार्यवाही शुरू कर दी. मालिनी के दोनों भाई अमेरिका में थे ही, सेवानिवृत्त पापा मालिनी की पढ़ाई और शादी की वजह से यहां रुके हुए थे, उस की शादी के तुरंत बाद मम्मीपापा यहां की गृहस्थी समेट कर, मालिनी की शादी में आए बेटों के साथ ही अमेरिका चले गए. पुनीत को भी पेनसिल्वानियां विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया लेकिन मालिनी को अंगरेजी साहित्य में अभी कहीं भी दाखिला नहीं मिल रहा था. इस बीच, वह गर्भवती भी हो गई थी और सास उस का बहुत खयाल रखने लगी थीं. भैया ने पुनीत का वीजा और टिकट वगैरह भेज दिया था. सो, उसे तो जाना ही था. मालिनी यह सोच कर कि कुछ ही दिनों की तो बात है, भैया जल्दी ही उस के भी आने की व्यवस्था कर देंगे, मालिनी अकेले ससुराल में रहना मान गई. और कोई चारा भी नहीं था. मम्मीपापा अमेरिका जा चुके थे, मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया था सो मैं होस्टल में रह कर पीएचडी कर रही थी. मालिनी मुझ से अकसर होस्टल में मिलने आती थी, सास की भी तारीफ करती थी. लेकिन एक रोज वह बहुत ही व्यथित अवस्था में आई.

‘‘‘कल रुटीन चैकअप के दौरान सोनोग्राफी हुई तो पता चला कि मेरे गर्भ में लड़की है, बस, तब से मेरी सास ने विकराल रूप धारण कर लिया है कि मैं गर्भपात करवाऊं. मेरी बहुत मिन्नत और ससुरजी के समझाने पर मानीं कि पुनीत से पूछ लें. मगर मेरे से पहले उन्होंने स्वयं पुनीत से बात की और माताजी के आज्ञाकारी बेटे ने तोते की तरह दोहरा दिया-जैसा मां कहती हैं, तुम वैसा ही करो. पुनीत ने कुछ रोज पहले ही फोन पर मुझ से कहा था कि अमेरिका में पैसा भले ही ज्यादा हो, मानसम्मान अपने देश में ही है, मैं तो नहीं बन सका लेकिन अपने बेटे को जरूर भारत में प्रशासनिक अधिकारी बना कर मानसम्मान दिलवाऊंगा. मैं ने चुहल की कि लड़की हुई तो? उस ने छूटते ही कहा था कि तो क्या हुआ, उसे ही आईएएस अफसर बनाएंगे और वही पुनीत अब अम्मा के सुर में सुर मिला रहा है. लेकिन मेरी भी जिद है चाहे जो भी हो मैं गर्भपात नहीं करवाऊंगी, डाक्टर और अस्पताल के स्टाफ को साफ मना कर दूंगी. यह मेरी भ्रांति थी.

‘‘‘माताजी ने कहा कि वह घर पर ही अपनी पहचान की एक मिडवाइफ को बुला कर किस्सा खत्म करवा देंगी. मैं किसी तरह जान बचा कर यहां आई हूं और अब वापस वहां नहीं जाऊंगी.’

‘‘मैं परेशान हो गई. न तो मालिनी को होस्टल में रख सकती थी न वापस जाने को कह सकती थी. तभी मुझे अभय का खयाल आया और मैं मालिनी को उस के घर ले गई.

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