‘‘आईमी, कितनी बार मैं तुम्हें आवाज लगा कर गया. कब उठोगी? संडे है, इस का मतलब यह नहीं कि दोपहर तक सोती रहो. 10 बजने को हैं, एयरपोर्ट जाने का वक्त हो गया, दादी का प्लेन जमीन पर उतर रहा होगा. सौरभ बेटी पर खीझ उठे थे.’’
रितिका बाथरूम से नहाधो कर निकल चुकी थी. 46 वर्ष की रितिका स्त्री लालित्य में अभी भी शोडशी बाला को टक्कर दे सकती थी. कम से कम यह एक कारण तो था कि सौरभ अपना 5वां दशक पार करने के बावजूद स्वयं को युवा और कामातुर समझने में लज्जित नहीं थे. रितिका अपनी झीनी सी स्किन कलर की नाइटी में गीले व उलझे बालों में हाथ फिराती मदमस्त सी सौरभ की ओर अग्रसर हुई, कामुक मुसकान बिखेरती उन के बदन से लिपटती रितिका ने कहा, ‘‘मेरे सैक्सी, (यह रितिका का सौरभ के लिए शौर्टफौर्म था) दादी को बच्चों के लिए हौआ मत बनाओ. आने दो न उन्हें. सबकुछ बदलना जरूरी नहीं है. जो जैसा है, वैसा चलने दो. वे अपने हिसाब से रहेंगी.’’
‘‘ठीक है, पर तुम साड़ी तो पहन लोगी न? इस में से तो सबकुछ दिख रहा है.’’
‘‘अच्छा, सबकुछ?’’
‘‘मेरा मतलब है, मां को बुरा लगेगा.’’
‘‘सैक्सी, जब उन के आने का वक्त होता है, तुम हमसब को इतना बदलने क्यों लग जाते हो? ऐसे तो हम उन से डरने लगेंगे. उन्हें हमें स्वीकार करना ही होगा, हम जैसे हैं, वैसे ही. वे विदेश में रहती हैं. दुनिया कितनी आगे बढ़ चुकी है, उन्हें पता है. उन्हें इन सब से फर्क नहीं पड़ना चाहिए. उन की दूसरी बहू एलिसा तो विदेशी है. क्या वह भी साड़ी में लिपटी रहती है? तुम जाओ, उन्हें ले आओ. वैसे भी, मैं यह ड्रैस बदलने वाली हूं.’’
रितिका ने 3 बैडरूम और एक हौल वाले फ्लैट को अत्याधुनिक संसाधनों से सजा रखा था. सौरभ का हीरों का व्यवसाय था. आयातनिर्यात तक लंबा फैला था व्यवसाय. रितिका बचपन से ही स्वच्छंद प्रकृति की थी और सौरभ भी खुले दिल के थे.
कार के दरवाजे को बंद करने की आवाज से रितिका को पता चल गया कि मां आ चुकी हैं. लिफ्ट में आती ही होंगी. घंटी बजने से पहले ही उस ने दरवाजा खोल दिया.
करुणा एक छोटे से सूटकेस और एक एयरबैग के साथ अपार्टमैंट में दाखिल हो गईं.
बड़े ही करीने से आसमानी साड़ी पहनी हुई, स्टेप कट बालों में 70 की उम्र की करुणा ऊर्जा और बौद्धिक व्यक्तित्व से भरी हुई थीं.
रितिका बुदबुदाई, ‘आ गई सलाह की पोटली.’
‘‘लिफ्ट नहीं चल रही क्या? ज्यादा देर लग गई?’’ रितिका ने पूछा.
सौरभ ने कहा, ‘‘कैसी लिफ्ट? मां सीढि़यों से चढ़तीउतरती हैं. मैं सामान ले कर लिफ्ट में आ गया. वे नहीं मानीं. देखो तो सही, अब भी वे कितनी फिट हैं.’’
रितिका कमाल की अभिनेत्री थी. उस ने कहा, ‘‘वाकई मम्मीजी, आप से हमें बहुतकुछ सीखना होगा.’’
‘‘अरे नहीं, थोड़ी थकावट हो गई है. चलो छोड़ो ये सब रितु, अब तुम्हारे हाथ की चाय पिऊं. अलबेली से अलग क्या बनाती हो, मैं भी देखूं?’’ मुसकराती हुई वे सोफे पर बैठ गईं.
रितिका को कुछ बुरा सा लगा, ‘‘एलिसा की मेड का नाम अलबेली है क्या?’’
‘‘नहींनहीं, मेरी छोटी बहू एलिसा आजकल मुझ से साड़ी पहनना सीख रही थी. उस ने कहा, ‘मौम 7 सालों से आप मेरे पास हो, कभी भी आप ने मुझे अपना कल्चर अपनाने पर जोर नहीं दिया. अब इंडिया जा रही हो तो साड़ी पहननी सिखा कर जाओ.’ फिर क्या था. घरभर में साड़ी पहन कर ऐसी अलबेली सी घूमती रहती कि बस तब से मैं ने उस का नया नाम अलबेली रख दिया.’’ करुणा ने हलकेफुलके मूड में कहा.
डाइनिंग टेबल पर रितिका हौंगकौंग से लाए टी सैट में चाय, चीज रोल और सैंडविच आदि ले कर आ गई थी.
‘‘रितु, इतनी जल्दी तुम्हारी चाय भी बन गई?’’
‘‘नहीं मम्मीजी, ये सारी चीजें मेड ने बनाई हुई थीं, चाय भी. खाना, किचन सब दोनों मेड की जिम्मेदारियां हैं. आप विदेशी खाना पसंद करती होंगी, इसलिए इटैलियन, अमेरिकन आज यही सब बनवाया है.’’
करुणा 2 मिनट चुप रहीं, फिर बोलीं, ‘‘रितु बेटा, देश की मिट्टी की सोंधी सुगंध मेरे खून में रचीबसी है. विदेश और विदेशी भी अच्छे हैं, पर उन्हें अपनाने के फेर में मैं खुद को भुलाना पसंद नहीं करती. रही बात विदेशी खाने की, तो एलिसा नौकरी के साथसाथ खाना बनाने की भी शौकीन है. उसे मैं ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों की कई रैसिपीज बनानी सिखाई हैं.’’
‘‘मम्मीजी, अब वे दिन लदने को हैं जब माना जाता था कि लड़कियों को खाना बनाना आना ही चाहिए. आजकल पैसे से सबकुछ खरीदा जा सकता है.’’
करुणा ने स्थिति बदलते हुए कहा, ‘‘भई, बच्चों को तो बुलाओ. डलास से मुंबई और फिर इधर नागपुर तक का सफर काफी थका देने वाला था, जरा अपने सूदब्याज को देख कर दिल को ठंडक तो पहुंचाऊं.’’
सौरभ झेंपते हुए से बोले, ‘‘मम्मी, बच्चे देररात तक पढ़ते हैं न.’’ रितिका ने बीच में टोका, ‘‘सौरभ, कहो न, बच्चे सो रहे हैं, संडे को 12 बजे से पहले नहीं उठते. जब उठेंगे, मिल लेंगे. मम्मीजी, तब तक आप फ्रैश हो लीजिए.’’
करुणा ने फ्रैश होने के लिए उठते हुए पूछा, ‘‘रितु, मैं अपना सामान कहां रखूं?’’
‘‘फिलहाल स्टोर में रख लीजिए. अभी हौल के दीवान पर आराम करिए.’’
बेटे के लाचार से चेहरे पर नजर पड़ते ही करुणा खुद ही अपना सामान स्टोर की ओर ले जाने लगीं. रितिका अपने बैडरूम में गई तो पीछे से सौरभ भी वहां पहुंच गए.
‘‘रितु, कहा था न, आईमी के साथ मम्मी रूम शेयर करेंगी.’’
‘‘आईमी मना कर चुकी है, सैक्सी.’’ समझा करो, उस की पर्सनललाइफ भी है. वह अब बच्ची नहीं रही कि दादीनानी की कहानी सुनते 10 बजे तक सो जाएगी. वह देररात में सोती है. मम्मीजी को दिक्कत होगी.’’